आज भी मेरे लिये
हिमालय पर्वत से हैं मेरे पापा
तो क्या हुआ जो पड गयी हैं
हाथों में चंद धुर्रियां
आज भी उनकी उंगली पकड
जब रास्ता पार करती हूँ
विश्वास होता है मन में
मैं सबसे मजबूत हाथों में हूँ
समय के साथ बढ गया है
चश्में का नम्बर, फिर भी
उनकी नजर पहचान लेती है
मेरी तरफ पडती
किसी भी बुरी निगाह को
उनकी तीक्ष्ण निगाह ही काफी होती है
ये कहने को कि अभी मै हूँ
उनकी उपस्थिति मात्र ही
बचा लेती है दुनिया की बलाओं से
आपके दिये वो एक - दो के सिक्के
मेरे लिये किसी खजाने से कम नही
आपकी खुशियों पर न्योछावर हैं
मेरे जीवन का हर सुख हर खुशी
आखिर क्या मायने है खुशी के
जिसमे आपकी मुस्कान शामिल ना हो
आपके नाम से ही
तो है मेरी पहचान
आपके साथ से ही है
मेरा मान- सम्मान
छोड कर दूर जाना
मेरी खुशी नही मजबूरी है
मै कही भी जाऊँ, कुछ भी कर लूं
मन छोड कर आती हूँ
हमेशा घर की दहलीज पर ही
और सजा लाती हूँ अपने माथे पर
आपके आशीर्वाद के छाप
सुकून की नींद और
खुशियों से पल्लवित हूं`
क्योकि पास है आपसा बागवान
जो हमें कभी मुरझाने नही देगा
आपकी लिखी रचना शनिवार 11 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजब देखेंगे खाली कुर्सी, पापा याद बड़े आयेंगे !
जवाब देंहटाएंhttp://satish-saxena.blogspot.in/2014/02/blog-post_16.html
दुनियां में वे बड़े खुशकिस्मत हैं जिसंके बड़े बैठे हैं भगवन उनको लम्बी उम्र दे , मंगलकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंआपके नाम से ही
जवाब देंहटाएंतो है मेरी पहचान
आपके साथ से ही है
मेरा मान- सम्मान
छोड कर दूर जाना
मेरी खुशी नही मजबूरी है
मै कही भी जाऊँ, कुछ भी कर लूं
मन छोड कर आती हूँ
हमेशा घर की दहलीज पर ही
सच कहा आपने , पिता का हाथ एक मजबूत सहारा होता है ! सार्थक शब्द
Bahut marmsaprshi .... Lajawaab rachna !!
जवाब देंहटाएंगजब की प्रस्तुती..
जवाब देंहटाएंपिता
एक मजबूत हस्ती
अस्तित्व की धुरी
पालनहारा
मुख्य कर्ता धर्ता.....
Rohitas Ghorela: सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)
पिता के ऊपर लिखी एक बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंमेरी हिम्मत नहीं होती पिताजी को स्वर्गीय सोचने की भी...आज तक नहीं उबर पाया हूं सदमे से
जवाब देंहटाएं