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शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

पिता जी


आज भी मेरे लिये
हिमालय पर्वत से हैं मेरे पापा
तो क्या हुआ जो पड गयी हैं
हाथों में चंद धुर्रियां
आज भी उनकी उंगली पकड
जब रास्ता पार करती हूँ
विश्वास होता है मन में
मैं सबसे मजबूत हाथों में हूँ
समय के साथ बढ गया है
चश्में का नम्बर, फिर भी
उनकी नजर पहचान लेती है
मेरी तरफ पडती
किसी भी बुरी निगाह को
उनकी तीक्ष्ण निगाह ही काफी होती है
ये कहने को कि अभी मै हूँ
उनकी उपस्थिति मात्र ही
बचा लेती है दुनिया की बलाओं से
आपके दिये वो एक - दो के सिक्के
मेरे लिये किसी खजाने से कम नही
आपकी खुशियों पर न्योछावर हैं
मेरे जीवन का हर सुख हर खुशी
आखिर क्या मायने है खुशी के
जिसमे आपकी मुस्कान शामिल ना हो
आपके नाम से ही
तो है मेरी पहचान
आपके साथ से ही है
मेरा मान- सम्मान
छोड कर दूर जाना
मेरी खुशी नही मजबूरी है
मै कही भी जाऊँ, कुछ भी कर लूं
मन छोड कर आती हूँ
हमेशा घर की दहलीज पर ही
और सजा लाती हूँ अपने माथे पर
आपके आशीर्वाद के छाप
सुकून की नींद और
खुशियों से पल्लवित हूं`
क्योकि पास है आपसा बागवान
जो हमें कभी मुरझाने नही देगा




8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना शनिवार 11 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. जब देखेंगे खाली कुर्सी, पापा याद बड़े आयेंगे !
    http://satish-saxena.blogspot.in/2014/02/blog-post_16.html

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  3. दुनियां में वे बड़े खुशकिस्मत हैं जिसंके बड़े बैठे हैं भगवन उनको लम्बी उम्र दे , मंगलकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  4. आपके नाम से ही
    तो है मेरी पहचान
    आपके साथ से ही है
    मेरा मान- सम्मान
    छोड कर दूर जाना
    मेरी खुशी नही मजबूरी है
    मै कही भी जाऊँ, कुछ भी कर लूं
    मन छोड कर आती हूँ
    हमेशा घर की दहलीज पर ही
    सच कहा आपने , पिता का हाथ एक मजबूत सहारा होता है ! सार्थक शब्द

    जवाब देंहटाएं
  5. गजब की प्रस्तुती..
    पिता
    एक मजबूत हस्ती
    अस्तित्व की धुरी
    पालनहारा
    मुख्य कर्ता धर्ता.....
    Rohitas Ghorela: सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)

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  6. पिता के ऊपर लिखी एक बेहतरीन रचना।

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  7. मेरी हिम्मत नहीं होती पिताजी को स्वर्गीय सोचने की भी...आज तक नहीं उबर पाया हूं सदमे से

    जवाब देंहटाएं

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