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रविवार, 25 अक्तूबर 2015

छोटी सी हिम्मत


मार डालो साले को, मार डालो। भरी बाजार में देखते ही देखते चंद लोगो ने पीट पीट कर एक व्यक्ति को मार डाला। सबके देखते देखते वो लोग जो पीटने में सबसे आगे थे, भीड से निकल कर हवा की तरह गायब हो चुके थे। कुछ ही देर में बाजार का पूरा माहौल ही बदल गया था। एक जिंदा इन्सान अब लाश बन चुका था। ना कोई उसे जीते जी बचाने आया था, ना मरने के बाद उसके पास जाने की हिम्मत कर रहा था। तभी किसी ने बढे ही दार्शनिक भाव से कहा- जाने कौन था, लगता है कोई अपनी दुश्मनी निभा गया। मै भी उस भीड का हिस्सा थी। सभी के जैसे मै भी मूकदर्शक बनी सब देख रही थी। मै भी भीड की तरह  ही सोच रही थी – सच में लगता है या तो ये कोई चोर उचक्का होगा या किसी ने दुश्मनी मे मार डाला होगा। वैसे देखने में तो ठीक ठाक घर का लग रहा था मगर देखने से कहाँ किसी के बारे में कुछ कहा जा सकता है। तभी मेरे मन ने मुझे धिक्कारा – अरू, क्या ये समय ये सब सोचने का है, कोई भी हो, मुंकिन है कि कही इसकी कोई सांस बची हो। क्या तुम भी इन सारे सोये हुये लोगो जैसी ही हो। भीड मत बनो। अगले ही पल मेरे कदम एकाएक उस व्यक्ति कहूँ या लाश की ओर बढ गये थे। मन उसके जीवित होने के लिये दुआयें करने लगा था। उसके शरीर के जख्मों का दर्द मुझे महसूस होने लगा था।

आज इस घटना को करीब तीन साल गुजर चुके, मगर आज भी वो व्यक्ति जब मेरे घर आता है, उस दिन की घटना चलचित्र की तरह मेरी आंखों के सामने आ जाती है। और अंततः मन खुशी से भर जाता है कि मेरी छोटी सी हिम्मत एक जीवन को मृत्यु के द्वार से खींच लायी। 

9 टिप्‍पणियां:

  1. अर्पणा जी, काश ऐसी हिम्मत हर इंसान कर सके तो कई लोगों को जीवन दान मील सकता है...

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  2. प्रशंसनीय प्रस्तुति

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  3. काश ऐसी ही हिम्मत और जिम्मेदारी का भाव हर व्यक्ति मे आ जाए तो सड़कों पर कोई समय से मदद न मिल पाने के कारण नही मरता

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  4. काश ऐसा साहस ईश्वर सबको प्रदान करे तो न जाने कितनी जाने बाख जाएँ.

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  5. काश कि ऐसी हिम्मत सभी दिखा पाते ....
    बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति

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  6. बहुत ही सुंदर लेख प्रस्‍तुति।

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