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मंगलवार, 7 जून 2016

ढूंढ रहा रह कोई सच................


ढूंढ रहा रह कोई सच, पर छोड ना पाये झूठ के साये
बदलते लोग विघुत गति से, बिन मतलब पास ना आये

झूठी तारीफों के पुल पर, रिश्तों की बिल्डिंग बन जाती
कहते फिरे सच सुनने वाले ही बस हमरे मन को भाये


किसने बनाया सच को कडवा, घोला मीठापन झूठ में
तुम ही बताओ छोड मिठाई, कडवी गोली किसे लुभाये

बदल गया इस कदर जमाना, कहना सच अपराध लगे
सरे बाजार झूठ, सीना ताने अदने सच को रहा डराये

मेडल, पुरस्कार और प्रसंशा, कडपुतलती मक्कारों की
जाने और दिन कैसे कैसे, कैसी प्रगति हम लेकर आये

घर छूटा, छूटा बडों का आदर, स्वतंत्र हुये बेशर्मी को
मार्ड्न बनने की होड कही, पशु से भी ना नीचे ले जाये

अभी वक्त है, वक्त रहते सुधरे, और सुधारे देश दुनिया
अगली पीढी हमें याद कर श्रद्धा से नतमस्तक हो जाये

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेरक और सार्थक प्रस्तुति

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  2. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन - चार विभूतियों की पुण्यतिथि में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-6-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2368 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  4. आज के हालात का बहुत सटीक चित्रण...बहुत सुन्दर

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  5. सच उगलती सार्थक रचना। अच्छी लगी।

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  6. बहुत खूब , मंगलकामनाएं आपको.....

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