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गुरुवार, 31 मई 2018

हो जाये तो अच्छा


न हँसने का दिल
न रोने का मन
कुछ गुमसुम सी
गुजर जाये तो अच्छा
न दोस्ती का नाता
न बैर का रिश्ता
कुछ अजनबी ही
रह जायें तो अच्छा
न गर्म दोपहर
न स्याह रात
कुछ ठंडी शामे भी
मिल जाये तो अच्छा
न जीने की तमन्ना
न मरने की ख्वाइश
जिन्दगी कुछ यूँ ही
बीत जाये तो अच्छा
न मिलने की आरजू
न खोने की कसक
वक्त कही खुद ही
ठहर जाये तो अच्छा
न गुरुर का नशा
न कमतर का गम
उम्र कुछ दरिया सी
बहती जाये तो अच्छा

5 टिप्‍पणियां:

  1. यूँ ही गुज़र जाये वो जिन्दगी क्या?
    अच्छी रचना.

    कविता और मैं

    .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रोहितास जी
      रचना पढने और अपनी प्रतिक्रिया देना के लिये धन्यवाद
      सारी जिन्दगी में कभी कभी कुछ पल ऐसे भी सुकून दे जाते हैं जब हम खुशी और गम से परे हो, बस मन में एक शान्ति का अहसास हो... बस ऐसे ही कुछ अहसासों को समेटने की सकारात्मक कोशिश में बन गयी ये रचना

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-06-2018) को "अब वीरों का कर अभिनन्दन" (चर्चा अंक-2989) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति कमजोर याददाश्त - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।

    जवाब देंहटाएं

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