छुपाते हैं बाबू जी,
पर याद तेरी आती बडी
हर जिद मेरी, खुशी
खुशी, पूरी करीं तुमने
सपने मेरे अपने किये
जो देखे थे मैनें
अब किससे करे जिद ये
बताओ ना बाबू जी, समझाओ न बाबू जी
हाँ याद तेरी आती बडी
हर बात नहीं तुमको
बताते हैं बाबू जी,
छुपाते हैं बाबू जी,
पर याद तेरी आती बडी
रौनक हूं तेरे घर की
औ टुकडा हूं मै तेरा
फिर क्यूं तेरे आंगन
नही रह पाई बाबू जी, बतलाओ ना बाबू जी
हाँ याद तेरी आती बडी
हर बात नहीं तुमको
बताते हैं बाबू जी,
छुपाते हैं बाबू जी,
पर याद तेरी आती बडी
गोदी में बिठाकर, मुझे
लड्डू भी खिलाया
है कौन तेरे जैसा दुनिया
में बाबू जी, दिखलाओ ना बाबू जी
हाँ याद तेरी आती बडी
हर बात नहीं तुमको
बताते हैं बाबू जी,
छुपाते हैं बाबू जी,
पर याद तेरी आती बडी
ससुराल में भी मन की
कभी कर नही पाई
आखिर कहाँ अधिकार जताऊं
मै बाबू जी, बतलाओ ना बाबू जी
हाँ याद तेरी आती बडी
हर बात नहीं तुमको
बताते हैं बाबू जी,
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-04-2021) को "गलतफहमी" (चर्चा अंक-4026) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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हर कदम पिता की याद आती है ।बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
Bhaout sunder
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