कितनी
आसानी से कह दिया उसने
आखिर क्या किया ,आपने मेरे लिए
जो भी किया,वो तो सब करते हैं
आज अगर मैं कुछ हूं
तो वो है परिणाम,
मेरी मेहनत का
मेरे पुरुषार्थ का
मेरे भाग्य का
या फिर मेरे पुण्य
कर्मो का
मैं चुपचाप सुन रहा हूं
इसलिये नहीं कि नहीं
कुछ भी
मेरे पास कहने को
नहीं चाहता मैं कोई
तर्क कुतर्क
नहीं चाहता मैं
बलपूर्वक बोना, भावनाओं
के बीज
भावशून्य पथरीले रेगिस्तान
में
मैं हूं धरा के अंत: स्थल में,बैठा बीज
बोलना न मेरा धर्म है, ना ही स्वभाव
फिर चंचल शाखाओं को
समझाया भी तो नहीं जा सकता
हां समय अवश्य पढ़ा देता है
हर किसी को सच का पाठ
कल उस शाख पर भी
खिलेंगें पुष्प, उगेंगें फल,
फिर जन्म लेगा बीज
फिर वो खो कर अपना अस्तित्व
जन्म देगा एक वृक्ष को |
इतनी ही आसानी से
चंचल, चपल शाखाओं द्वारा
फिर दोहराया जायेगा,
यही प्रश्न
आखिर क्या किया,आपने मेरे लिए ?
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहन प्रश्न।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन।
अक़्सर चंचल शाखएँ ऐसे प्रश्न करती हैं।
निर्बोध होती हैं वो जब यही प्रश्न उनसे भविष्य करता है समझ के द्वार तब खुलते हैं।
सादर
मर्मस्पर्शी कथ्य ।
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