मंजिल अभी और दूर कितनी, किसे पता है
मिलेंगें राह में कांटें या कलियां, किसे
पता है
फर्ज मुसाफिर का सिर्फ चलते चले जाना
मिले किसे मोड, हमसफर, किसे पता है
दिये जला दिये राह में, भूले भटकों के लिये
कितनी उम्र मगर चिराग की, किसे पता है
कसूर किस्मतों का या कमीं कोशिशों में
सिवा तेरे वजह शिकस्त की किसे पता है
दिखा रहा है खौफ, मासूमों मजलूमों को
खुद भी है वो डरा डरा मगर किसे पता है
ख्वामखाह घुलता आदम, फिक्रे जिंदगी में
होनी कब किस करवट बैठे, किसे पता है
बुलंदियों के खातिर ये खूनो खराबा कैसा
ढल जाये सूरज किस घडी, किसे पता है
पलाश करती नहीं भरोसा, बंद आंखों से
शक्लो सूरत जयचंद की भला किसे पता है
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-०९-२०२१) को
'ईश्वर के प्रांगण में '(चर्चा अंक-४१९१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु हार्दिक आभार
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका आगमन हमारे मनोबल और प्रयासों के लिये ऊर्जा का स्त्रोत है
हटाएंआपका आभार
सुन्दर
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी उपस्थिति मेरे लिये आशीर्वाद के समान है।
हटाएंअभिनंदन
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जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंThank you Onkar JI
हटाएंAabhar
गहन रचना...
जवाब देंहटाएंBahut bahut dhanyawaad Sandeep Ji
हटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंThank you so much Manisha Ji.
हटाएंउम्दा! सृजन।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
दिये जला दिये राह में, भूले भटकों के लिये
जवाब देंहटाएंकितनी उम्र मगर चिराग की, किसे पता है
कसूर किस्मतों का या कमीं कोशिशों में
सिवा तेरे वजह शिकस्त की किसे पता है
बस मनसूबे लगाते हैं सही कहा किसे पता है आने वाले समय का किसी को अंदाजा भी नहीं
बहुत ही लाजवाब सृजन।
वाह!!!
ब्लॉग पर आने और मनोबल बढाने हेतु आपका हार्दिक अभिनंदन
हटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंकसूर किस्मतों का या कमीं कोशिशों में
जवाब देंहटाएंसिवा तेरे वजह शिकस्त की किसे पता है
बहुत सुंदर सृजन....