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शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

किसे पता

 


मंजिल अभी और दूर कितनी, किसे पता है

मिलेंगें राह में कांटें या कलियां, किसे पता है

फर्ज मुसाफिर का सिर्फ चलते चले जाना

मिले किसे मोड, हमसफर, किसे पता है

दिये जला दिये राह में, भूले भटकों के लिये

कितनी उम्र मगर चिराग की, किसे पता है

कसूर किस्मतों का या कमीं कोशिशों में

सिवा तेरे वजह शिकस्त की किसे पता है

दिखा रहा है खौफ, मासूमों मजलूमों को

खुद भी है वो डरा डरा मगर किसे पता है

ख्वामखाह घुलता आदम, फिक्रे जिंदगी में

होनी कब किस करवट बैठे, किसे पता है

बुलंदियों के खातिर ये खूनो खराबा कैसा

ढल जाये सूरज किस घडी, किसे पता है

पलाश करती नहीं भरोसा, बंद आंखों से

शक्लो सूरत जयचंद की भला किसे पता है

18 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-०९-२०२१) को
    'ईश्वर के प्रांगण में '(चर्चा अंक-४१९१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु हार्दिक आभार

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. आपका आगमन हमारे मनोबल और प्रयासों के लिये ऊर्जा का स्त्रोत है
      आपका आभार

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति मेरे लिये आशीर्वाद के समान है।
      अभिनंदन

      हटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. उम्दा! सृजन।
    सुंदर प्रस्तुति।

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  6. दिये जला दिये राह में, भूले भटकों के लिये
    कितनी उम्र मगर चिराग की, किसे पता है
    कसूर किस्मतों का या कमीं कोशिशों में
    सिवा तेरे वजह शिकस्त की किसे पता है
    बस मनसूबे लगाते हैं सही कहा किसे पता है आने वाले समय का किसी को अंदाजा भी नहीं
    बहुत ही लाजवाब सृजन।
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ब्लॉग पर आने और मनोबल बढाने हेतु आपका हार्दिक अभिनंदन

      हटाएं
  7. कसूर किस्मतों का या कमीं कोशिशों में

    सिवा तेरे वजह शिकस्त की किसे पता है

    बहुत सुंदर सृजन....

    जवाब देंहटाएं

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