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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

उसकी हर बात

 


खिल जाती खुशी सोच, उसकी हर बात

मासूम कलियों सी लगे, उसकी हर बात


जमाने भर की बात को, करके अनसुना

सुनी मदहोश हो हमने, उसकी हर बात

 

अधूरा हर अफसाना, उनके जिक्र बिना

हर बात का जवाब लगे, उसकी हर बात

 

बेदिली बनी सितम, इस दिले नादां पर

नश्तर सा चुभने लगी, उसकी हर बात

 

तूफां में पतवार तो, अंधेरों में चिराग सी

महफ़िलों की जान है, उसकी हर बात

 

दरवाजे बंद दिलों के, खुलते खुद ब खुद

खोई चाभियां हैं तालों की, उसकी हर बात

 

ना चाहने वाले भी, सुनते हैं उसे गुमसुम

सबकी अपनी बन जाती, उसकी हर बात

 

जाने जादू है, नशा है, या बचपन मासूम

रोते हुओं को हंसा देती, उसकी हर बात

 

मुंकिन नही दुखे दिल, उससे किसी का

सधी सी और सही भी, उसकी हर बात

 

यूं ही तो नहीं पलाश, तलबगार उनकी

खरी ओस की बूंद सी, उसकी हर बात

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