कितने बरस बाद आज वो अपने बडे दद्दा से मिलने जा रही थी। कब से मां बाऊ जी से सुनती आ रही थी दद्दा की सफलता की कहानियां। और आज जब उसका मुम्बई के एक नामी कालेज में दाखिला हुआ तो उसको दाखिले की खुशी से ज्यादा दद्दा से मिलने की खुशी थी।
दद्दा दरअसल कोई बुजुर्ग व्यक्ति नही,
पैतीस चालीस के आस पास का नवजवान युवक था। बीस बाईस की उमर में ओमी कुछ काम की तलाश
में मुंबई आ गया था और आज अपने अथक परिश्रम से मुंबई जैसे शहर में अपना खुद का एक फ्लैट
खरीद लिया था। किसी भी तरह भी बुरी लत उसे उसी तरह ना छू सकती थी जैसे चंदन पर लिपटे
सर्पों का असर नहीं होता। उसका स्वप्न कलाम की तरह एक बडा वैज्ञानिक बन कर देश की सेवा
करना था, इसीलिये घर वालों के लाख समझानें के बावजूद उसने स्वयं को वैवाहिक बंधनों
से मुक्त रखा था। चूंकि उस समय अपने परिवार और गांव के बच्चों में ओमी बडा था, इसीलिये
सभी बच्चे उसे दद्दा बुलाते थे।
ओमी जितना पढाई लिखाई में होशियार था
उतना ही स्वभाव से सौम्य। गांव का हर परिवार अपने बच्चों को ओमी जैसा बनाना चाह्ता
था।
रजनी भी अपने ओमी दद्दा को अपना आदर्श
मानती थी, उन्ही की तरह वो भी अपने गांव अपने परिवार का नाम रौशन करना चाहती थी। ये
उसकी लगन और परिश्रम का ही परिणाम था कि उसे आई. आई. टी मुंबई में इजीनियरिंग के लिये
दाखिला मिला था, घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी ना थी, और फिर ओमी सबसे लिये परिवार
के सदस्य सा ही था, सो यह तय हुआ था कि रजनी को यहां गाडी में बिठा दिया जायगा, और
आगे की सारी जिम्मेदारी संभालने के लिये ओमी स्टेशन पर आ कर ओमी को ले लेगा।
रजनी पहली बार घर से निकल कर इतनी दूर
जा रही थी, मगर मन में डर के लिये लेषमात्र भी स्थान ना था। नन्ही आंखें, बडे बडे सपने
देख रहीं थी।
गाडी जैसे ही मुंबई स्टेशन के प्लेट्फार्म
पर पहुंची, खिडकी से ही रजनी ने ओमी को देख लिया।
एडमीशन की सारी औपचारिकतायें पूरी हो
चुकीं थी। आई आई टी से ओमी का फ्लैट कुछ ज्यादा दूरी पर ना था। अतः ओमी के सुझाव पर
रजनी के माता पिता ने रजनी को ओमी के फ्लैट पर रहने की बात स्वीकार कर ली।
घर परिवार गांव के सभी लोग एक तरफ ओमी की तारीफ करते ना अघाते थे, रजनी के माता पिता के लिये तो वह ईश्वर का साक्षात रूप था, जिसने बिना किसी लोभ लालच के उनकी हर संभव मदद की थी। रजनी के हॉस्टल की फीस बचने के कारण वो अपने छोटे बेटे को भी अच्छे स्कूल में पढा पा रहे थे, मगर इन सबके बीच एक शख्स था, जो दिन प्रतिदिन खुद से लडता था, हकीकत को भी बुरा स्वप्न समझने की कोशिश करता था, बेचैन मन मछली की तरह तडप कर रह जाता था, हर दिन कॉलेज जाते समय वापस ना आने का निर्णय करता, और शाम तक यह निर्णय पानी के बुलबुले सा टूट जाता। रजनी का अंतर्मन धीरे धीरे घुल रहा था, गल रहा था, टूट रहा था, क्योंकि वह एक ऐसी काल कोठरी में आ चुकी थी जो दुनिया की नजर में देवस्थल था, मगर सबका ग्राम देवता उसके लिये अब दद्दा नही सिर्फ दानव था।
अब उसका एक ही लक्ष्य था। समय के साथ अपनी उन शक्तियों को एकत्रित करना, जिनसे वह इस दानव को पराजित कर अपनी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के साथ साथ उसके इस रूप को अपनों को, समाज को दिखा सके क्योंकि वह भली भांति जानती थी कि यह समाज बहुत आसानी से चरित्रहीन पुरुष के दोषों को किसी भी मासूम निर्दोष लडकी पर आरोपित कर उसे कलंकिनी का खिताब देने की कला में निपुर्ण है।
ओह, ऐसे देवता कितने दानव होते हैं कहना मुश्किल है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
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