प्रशंसक

गुरुवार, 6 जनवरी 2022

सूखा गुलाब

 


कितनी मुश्किलों से, हमे उसने भुलाया होगा

जली होगीं उगलियां, जब खत जलाया होगा

 

भूल जाने की कोशिशों में, जाने कितनी दफा

हंसी लम्हों को जेहन में, रो रो दोहराया होगा

 

छोड दी होगीं कई, पसंदीदा चीजें ओ जगहें

संग मेरे उसने जहां, दो पल भी बिताया होगा

 

मिटा दी होंगीं तकरीबन सभी, निशानियां लेकिन

कुछ एक को जतन से, कोह्नूर सा  छुपाया होगा

 

सुन के वो गीत जो कभी, साथ हमने गुनगुनाये

पल भर को तो मन, उस दौर टहल आया होगा

 

छिडें होगें जो कभी किस्से, गुजरे हुये जमानों के

जरूर चेहरा मेरा खयालों में, उभर आया होगा

 

रिमझिम बारिशों से लिपट जब जब भीगा ये मन

हुआ अहसास खिला गुलाब कहीं मुरझाया होगा

 

कुछ भुला देता है वक्त, कुछ हालात भुला देते हैं

यकीं फिर भी दुआओं में, मेरा जिक्र आया होगा

 

अरसे बाद इत्तेफाकन हो गया था आमना सामना

पलाश किस तरह हमें उसने, अंजान बताया होगा

1 टिप्पणी:

आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

GreenEarth