प्रशंसक

मंगलवार, 18 जनवरी 2022

दशम् रस

 

कुछ दिनों से हमारी, हमारी उनसे नोंक झोंक नहीं हो रही। मन में अजीब सी खलभली मची हुयी है, कि आखिर ऐसा क्या हमने कर दिया कि हमारा पिछले तीस सालों से चला आ रहा सिलसिला ऐसे खतम हो गया जैसे धरती से डाएनासोर।

सुबह की चाय के साथ भले ही लोगों को बिस्किट खाने में आनंद आता हो, मगर मेरे लिये तो हमारी श्रीमती जी की खरी खोटी बातें ही बिस्किट हैं। हां अक्सर बच्चे ये कह देते हैं पापा आज फिर वही शुरु कर दिया आपने। अब तो हम लोगों को भी याद हो गया है कि आप ये कहोगे तो मम्मी ये कहेंगी, फिर आप ये और मम्मी ये…….।

मगर ये आज की जेनेरेशन क्या जाने कि इस दसवें  तू तू मे मे नामक रस में जो आनंद है, वो ना तो मैथिली जी की कविताओं में मिल सकता है और ना ही बशीर बद्र जी के शेरों में। एक शेर को गीदड बन जाने में जो आनंद मिलता है वो तो कल्पना से परे है। और मै अपने को दुनिया का सबसे सौभाग्यशाली व्यक्ति समझता हूं जिसे प्रभू की कृपा से ऐसा पत्नी नामक रत्न मिला, जिसके कारण मैं प्रति दिन इस आनंद से सागर में गोते खाता हुआ जीवन के इस रस में डूबा हुआ था।
हे प्रभू, आखिर आप मुझे किस गलती का दंड दे रहे हैं, कि मेरी श्रीमती जी मुझसे बिल्कुल गौ सा व्यव्हार कर रहीं हैं।

मै पिछले एक सप्ताह से कितने ही जतन कर चुका, मगर वो तो मुझसे ऐसा व्यव्हार कर रहीं है जैसे कोई नव विवाहिता आज्ञाकारी बहू अपने सास श्वसुर से करती है। 

प्रभू मै जानता हूं, आपने ही उसे गौ बनने की प्रेरणा दी होगी, मेरी आपसे याचना है कि उसे कम से कम मरकही गौ ही बना दीजिये। उम्र के इस मोड पर मै अपनी ओरीजिनल पत्नी को खोने का दुख अब और सहन नहीं कर सकता।

सच कहूं आपसे, पिछले सोमवार जब मैने श्रीमती जी से बोला- थोडी चाय मिल सकेगी क्या, और उधर से बिल्कुल ही अनपेक्षित उत्तर आया- अच्छा देती हूं, तो मै तो एकदम हडबडा ही गया, जैसे  आप भगवान का भोग लगाये और कटोरी से सारा प्रसाद आपको गायब मिले। इससे पहले तो कभी ऐसा नही हुआ, कभी कहा जाता था- कभी मुझे भी कोई बना कर देता मगर मेरे नसीब में ये कहां, कभी कहा जाता- नहीं कह दूं तो क्या उठकर खुद बना लोगे, कभी कहा जाता- सात बजे नही कि लोगो का चाय का राग शुरु हो गया.... मगर हां मन में कुछ नया और मधुर सा स्वर सुन कर अपने नव विवाहित जीवन की स्मृतियां तरोताजा हो गई। उसी आजमाइश में ही तो मैने बोला था – साथ में कुछ खाने को भी मिल सकेगा क्या?

रसोई से आवाज आई- क्या लेगें, बताइये।

मै तो चारो खाने चित्त हो गया था, लगा पता नही किस लोक में आ गया।

मै बस धीरे से बोल सका था- कुछ भी चलेगा।

वो भी क्या दिन थे जब मैं एक पतंग सा जीवन जीता था, मेरी हर उडान में उसकी मर्जी शामिल थी, वो मुझे जब चाहे मुझे उडने देती थी, जब चाहे खींच कर मुझे एक ही झटके में धूल चटा देती थी। मगर कभी उसने मुझे कटने नहीं दिया था, मगर आज मुझे मेरा जीवन कटा हुआ सा लग रहा है।

दो दिन पहले जब मैनें बच्चों को बोला- जरा देखो मम्मी को क्या हो गया, तो वो कहने लगे- क्या पापा आप भी, मम्मी ठीक से बात करें तो भी बुरा और ना ठीक से बात करें तो भी। घर में शांति आपको अच्छी नहीं लग रही क्या? अब कैसे कहता अपने बच्चों से कि इस रूप में तुम्हारी मम्मी मुझे अपनी नहीं लग रही।

उस दिन के बाद से मेरा जीवन जो कि शान्तिनिकेतन बना हुआ है, और अब मैं तो क्या मेरे बच्चे भी सकते में है, किसी को भी समझ नही आ रहा कि मम्मी को किसी डॉक्टर की जरूरत है या किसी ने उनपर जादू टोना कर दिया है।

हे भोलेनाथ, माना मैने कभी आपके लिये उपवास नहीं रखा मगर मेरी पत्नी तो नियम से ना जाने कितने बरसों से बिना नागा किये आपका व्रत करती है। कहते है भले ही पत्नी व्रत पूजन करे मगर उसके आधे पुन्य पर पति का नैसर्गिक अधिकार होता है। हे प्रभू उन्ही पत्नी द्वारा अर्जित पुन्यों मे से कुछ का फल मुझे दे मुझ पर प्रसन्न हो मुझे मेरी वही पत्नी लौटा दीजिये। चलिये मै आपके पांच सोमवार का व्रत भी कर लूंगा।

मित्रों, मेरी बुद्धि तो बिल्कुल भी काम नहीं कर रही, यदि आप लोग मुझे मेरी मौलिक पत्नी की पुनः प्राप्ति का कुछ उपाय बताये तो इस निरीह पति पर महान उपकार होगा।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 20 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  2. व्वाहहहहहह..
    बेहतरीन रचना..
    आभार..
    सादर

    जवाब देंहटाएं

आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

GreenEarth