प्रशंसक

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2022

हल्ला हिजाब का

शोर करने को कहां है कोई मुद्दा जरूरी

पता है शोर खुद ब खुद मुद्दा बन जायेगा

पिछले कुछ दिनों में चुनाव के अलावा जो मुद्दा सबसे ज्यादा चर्चा मे है – वह है हिजाब

सामान्यत यह मेरा स्वभाव है कि मैं घटनाओं पर चिंतन मनन करती हूं मगर उस पर अपनी प्रतिक्रिया केवल स्वयं तक ही सीमित रखती हूं, मगर आज मैंने स्वयं को ऐसा करने से रोका और इसके पीछे कई कारण भी है, जिनमें से सबसे प्रमुख है इस मुद्दे में जुड़ी है शिक्षा पद्धति और उसकी निष्ठा पर उठा सवाल।

इससे पहले की हम इस मुद्दे का विष्लेशण करे, हम जरा ये देख लेते हैं, कि आखिर ये मुद्दा है क्या।

हिजाब मुद्दे की शुरुआत

कर्नाटक के उड्डपी मे, साल के पहले दिन यानि १ जनवरी को यह विवाद तब शुरु हो गया जब वहां के एक कॉलेज की २८ छात्राओं को हिजाब पहनकर क्लास करने से रोका गया।इससे बाद इन छात्राओं ने अनुमति के लिये धरना प्रदर्शन शुरु कर दिया।

जैसा कि हमेशा ही होता है, कि राजनीतिक दल ऐसे मुद्दो को अपने वोटबैंक और राजनीतिक अवसर की तरह से लेते है, और बिन बुलाये मेहमान की तरह ऐसे मुद्दो मे शामिल हो, मुद्दो को सुलझाने के बजाय वो सारे प्रयास करते हैं जिससे मुद्दा और गरम हो। ऐसा ही इस मुद्दे में भी हुआ, धीरे धीरे यह मुद्दा देश के कई राज्यों जैसे बिहार, राजस्थान मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व कई अन्य राज्यों में पहुंच गया।

चुनावी भाषणों मे भी अलग अलग पार्टियों ने इसे अपने अपने तरीके से उछाल, वोटरो को अपनी तरफ करने के तरीके अपनाये।

हिजाब मुद्दे के विभिन्न पहलू

इस मुद्दे पर मेरे मन में  तीन सवाल उठते हैं

१.      क्या यह दिन उस कॉलेज का प्रथम दिन था,

२.      क्या उस दिन उस कॉलेज मे किसी मुस्लिम छात्रा का हिजाब पहनकर आने का पहला दिन था

३.      क्या वह दिन आलिया का उस कॉलेज में प्रथम दिन था?

यदि उपरिक्त तीनों ही प्रश्नो का उत्तर नहीं है, तो चौथा एक और प्रश्न उठता है कि १ जनवरी २०२२ से पहले कॉलेज में मुस्लिम छात्राओं के लिये क्या व्यवस्था थी, जो सभी छात्राओं को समान रूप से स्वीकार थी। यदि आलिया हिजाब पहन कर जाते थीं, तो कॉलेज प्रशासन ने अचानक से क्यो मना किया, और यदि आलिया बिना हिजाब के कॉलेज में अपनी पढाई करती थीं तो क्यो अचानक से उन्होने क्लास में हिजाब पहनकर ही पढाई करने का मन बनाया।

यहां आपको बताते चले कि उड्डपी में लम्बे समय तक रहने वाली रश्मि सामंत जिनकी प्रारंभिक शिक्षा उड्डपी में ही हुयी है, कहती हैं कि उड्डपी के स्कूलों में यूनीफार्म नियम बहुत ही सख्त हैं, स्कूलों में एक चेंजिग रूम की व्यवस्था रहती हैं, जहां वे छात्राये जो हिजाब पहनकर आती है, क्लास जाने से पहले वह यूनिफार्म ही पहन लेती हैं।

रश्मि सामंत के विचारों को जानने के बाद एक प्रश्न फिर जन्म लेता है

आखिर अचानक से ऐसा क्या हुआ जिसने कई वर्षो से स्वीकृत कालेज के मान्य सिस्टम को मानने से इंकार कर दिया?

कई लोग अपने अपने तरीके से अपनी प्रतिक्रियायें दे रहे हैँ, कुछ लोग इसे स्वतंत्रता से जोड रहे हैं तो कुछ लोग इसे भेदभाव के रूप में देख रहे हैं।

मलाला यूसुफजई और मरियम नवाज हिजाब पहनकर स्कूल जाने वाली लडकियों को रोकने को भयावह बताती हुयी भारतीय राजनेताओं से अपील करती हैं कि भारतीय मुस्लिम महिलाओं को वह हाशिये पर जाने से रोकें।

व्यक्तिगत विश्लेषण

बात जहां तक स्वतंत्रता की हो रही है, तो हमे यह भी समझना होगा कि आखिर स्वतंत्रता से हमारा तात्पर्य क्या होता है और सही अर्थो मे क्या होना चाहिये।हमे स्वतंत्रता की मर्यादा का मान रखना चाहिये।

भारत आज एक स्वतंत्र देश हैं, हमे बहुत से अधिकार भी मिले हैं,हमे विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्र है किंतु फिर भी स्वतंत्रता की भी एक परिभाषा होती है।  

व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ ही साथ देश और प्रदेशों को भी  समाज में शांति एवं व्यवस्था बनाने हेतु नियमों को बनाने की स्वतंत्रता है बशर्ते किसी जनमानस की भावनायें आहत ना हो।

यहां मैने दो व्यक्तियों के विचारों को इंगित किया, जबकि बहुत से बडे बडे लोग अपनी प्रतिक्रियायें दे चुके हैं, इसका भी एक कारण है- एक तरफ हैं रश्मि जी जो उड्डपी में पली बढी है, वहां की संस्कृति को भली भांति समझती हैं, उड्डपी के लोगों की उनको समझ है।

दूसरी तरफ हैं मलाला- निश्चित तौर पर ना तो मुझे उनकी समझ पर संदेह है और ना ही ऐसा करने का कारण। किंतु शायद उन्होने उड्डपी को उतने करीब से नही देखा,जितनी कडी उन्होने प्रतिक्रिया दे दी।

खास लोगो को कुछ भी बोलने का उतना अधिकार नही होता जितना एक आम आदमी को है क्योकि  खास व्यक्ति के विचारों मे ताकत होती है। उसके विचार कई लोगो के विचार उनकी मानसिकता को परिवर्तित करने की शक्ति रखते है, समाज भ्रमित भी हो सकता है या समाज को सही दिशा भी मिल सकती है।इसलिये खास व्यक्ति स्वतंत्र होकर भी स्वतंत्र नही।

एक और बात हमे देखनी चाहिये आखिर स्कूलों, कॉलेजों में यूनीफार्म का उद्देश्य क्या है? 

और क्या हिजाब पहनना उस उद्देश्य की पूर्ति में बाधक है? 

क्या हिजाब पहनने से रोकने का मूल उद्देश्य शिक्षा को सुचारु रूप से चलाना था या कि समुदाय और लिंग विशेष की स्वतंत्रा का हनन करना?

आखिर यह कितना सही था कि इस घटना के कुछ दिन बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो आता है जिसमें दो मुस्लिम महिलायें बुर्का पहन कर बाइक चालाते हुये दिखायी जाती है?

आखिर यह कितना सही है इस घटना के बाद ही अन्य राज्यों मे भी समुदाय विशेष की छात्राये हिजाब पहन कर कॉलेज जाने को आतुर दिख रही हैं?

आखिर यह कितना सही है कि इस घटना के बाद ही हिजाब दिवस मनाने का एलान किया जा रहा है?

हमे यह समझना होगा कि किसी भी महिला को भारत में हिजाब पहनने से नही रोका गया वरन एक कॉलेज में क्लास के दौरान हिजाब ना पहनने के लिये कहा गया है। और अब यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के अधीन है।

क्या हम लोगो को एक अच्छे भारतीय का परिचय देते हुये सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और उसके परिणाम की प्रतीक्षा नही करनी चाहिये?

क्या देश भर में प्रोटेस्ट कर कॉलेजों और स्कूलों के बंद करवाने से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को किसी भाति परिवर्तित किया जा सकता है?

निश्चित तौर पर हमें सयंम रखना होगा और विश्वास रखना होगा और आस्था रखना होगी- भारत में, भारतीय संविधान में और शैक्षिक संस्थानों के कार्यकलाप की परिपाटी में।

1 टिप्पणी:

  1. उचित व सार्थक विश्लेषण व सटीक प्रश्न।
    मुद्दा नहीं कुछ बस शोर मुद्दा बन गया है।

    नई पोस्ट- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला

    जवाब देंहटाएं

आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

GreenEarth