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बुधवार, 29 सितंबर 2010

अयोध्या की गुजारिश

ना मुझे मन्दिर की हसरत ,
ना मुझे मस्जिद की ख्वाइश ।
बाँट ना बस हिन्द को अब ,
मेरी इतनी सी गुजारिश ॥

रक्त का चन्दन मेरे,
माथे का कलंक बन जायगा ।
चादर चढाओगे मुझपे जो ,
कफन वो मेरा कहलायेगा ॥
घर किसी का उजडे जिससे,
 ना बना ऐसी कोई साजिश ।
बाँट ना बस हिन्द को अब ,
मेरी इतनी सी गुजारिश ॥

मै तो बसता हूँ तुम्ही में,
दिल में देखो तो जरा ।
लाशों की नींव के तले,
ना बना तू दर मेरा ॥
बरसों सहा चुपचाप मैने,
ना कर सब्र की आजमाइश ॥
बाँट ना बस हिन्द को अब ,
मेरी इतनी सी गुजारिश ॥

मेरी इतनी सी गुजारिश .....................

10 टिप्‍पणियां:

  1. अवध का अर्थ जहा किसी का वध ना हो
    सही मौके पर आपने इस बात को चरितार्थ किया है

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  2. बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

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  3. समसामयिक सार्थक सन्देश देती रचना के लिये बधाई।

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  4. bahut hi hrday sparshi lines hai
    padkar nami agai ankho main

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  5. ्ह्रदयस्पर्शी रचना……………आज की जरूरत्।

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  6. काश!! ये आवाज उन कानों तक पहुँचती.

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. आठ हजार प्रष्ठ का लेखा लिख डाला न्यालायाय ने
    एक और दो की गणित सिखाई थी हमको विद्यालय ने
    पर न पता था यहाँ दिखेगा अंकों से होता विभाजन
    कर डाला बंटवारा इसका अब नहीं कोई फरमाईश
    बाँट ना बस हिन्द को अब ,
    मेरी इतनी सी गुजारिश ॥

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