ना मुझे मन्दिर की हसरत ,
ना मुझे मस्जिद की ख्वाइश ।
बाँट ना बस हिन्द को अब ,
मेरी इतनी सी गुजारिश ॥
रक्त का चन्दन मेरे,
माथे का कलंक बन जायगा ।
चादर चढाओगे मुझपे जो ,
कफन वो मेरा कहलायेगा ॥
घर किसी का उजडे जिससे,
ना बना ऐसी कोई साजिश ।
बाँट ना बस हिन्द को अब ,
मेरी इतनी सी गुजारिश ॥
मै तो बसता हूँ तुम्ही में,
दिल में देखो तो जरा ।
लाशों की नींव के तले,
ना बना तू दर मेरा ॥
बरसों सहा चुपचाप मैने,
ना कर सब्र की आजमाइश ॥
बाँट ना बस हिन्द को अब ,
मेरी इतनी सी गुजारिश ॥
मेरी इतनी सी गुजारिश .....................
अवध का अर्थ जहा किसी का वध ना हो
जवाब देंहटाएंसही मौके पर आपने इस बात को चरितार्थ किया है
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
जवाब देंहटाएंसमसामयिक सार्थक सन्देश देती रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंbahut hi hrday sparshi lines hai
जवाब देंहटाएंpadkar nami agai ankho main
्ह्रदयस्पर्शी रचना……………आज की जरूरत्।
जवाब देंहटाएंकाश!! ये आवाज उन कानों तक पहुँचती.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
जवाब देंहटाएंमध्यकालीन भारत धार्मिक सहनशीलता का काल, मनोज कुमार,द्वारा राजभाषा पर पधारें
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआठ हजार प्रष्ठ का लेखा लिख डाला न्यालायाय ने
जवाब देंहटाएंएक और दो की गणित सिखाई थी हमको विद्यालय ने
पर न पता था यहाँ दिखेगा अंकों से होता विभाजन
कर डाला बंटवारा इसका अब नहीं कोई फरमाईश
बाँट ना बस हिन्द को अब ,
मेरी इतनी सी गुजारिश ॥