बस शब्द ही रह जायेंगें
जब हम जहाँ से जायेंगें
जब भी करेंगें याद वो
मेरे शब्द ही दोहरायेंगें
इसलिये तो कहते हैं आपसे
सदा सोच कर ही बोलिए
जो शब्द तीखे हों तीर से
वो बात मुख से न बोलिये
नेता हो या अभिनेता हो
कविवर हो या विधार्थी
विजयी बनेगा जग में तब
जब शब्द बनेंगें सारथी
शब्दभेदी बाण से ही तो
पृथ्वी ने गौरी को था मारा
शब्दो के मायाजाल से ही
सावित्री से यम था हारा
शब्द है इक ऊर्जा
जो नष्ट ना होगी कभी
शब्द की महिमा के आगे
नतमस्तक हुये है देव भी
माँ का कभी आशीष बन
जीवन को देते सफलतायें
और कभी सब खाक करतें
बनके गरीब दुखियों की हाय
इसलिये तो कहते हैं आपसे
सदा सोच कर ही बोलिए
जो शब्द तीखे हों तीर से
वो बात मुख से न बोलिये
बहुत सोचा समझा शीर्षक है और आप ने काफी अच्छे से इसे व्यक्त किया है ........... आप से ही प्रेरित हो कर कुछ पंक्तियाँ हमारी तरफ से .....
जवाब देंहटाएंशब्द की शक्ति तो बस ऐसे समझ सकते हैं हम
एक दिन चुप चाप रह जो कर सकें कुछ आप हम
सुबह होती राम का नाम लेने से जहाँ
प्रकट जब भी भाव करते प्रस्तुत रहेगे शब्द वहां
गर कोई ये सोचता हो मन में हैं हम बात करते
और भावों को ह्रदय के हम इशारों में समझते
तो ने ये भूले वो बंधू मस्तिष्क है जब कुछ सोचता
सोचने को बाध्य होता और शब्द को खोजता
रूप तो शब्दों के निकलते हैं अनेक प्रकार से
कभी ये मुख से निकलते कभी कलम के पार से
जो समझ जाए महत्ता शब्द के इस जाल की
सोच कर निकले तो समझो राह हैं खुशहाल की