पलाश सिर्फ अपनी डाल पर लगता है और खिल कर धरती पर गिर जाता है। वह सिर्फ अपने लिए अपनी डाल पर ही सीमित रहता है। और डाल से अलग होते ही अपने अस्तित्व को समाप्त कर देता है। यही है उसका पूर्ण समर्पण उस डाल के प्रति जिसने उसको जीवन दिया ।
रविवार, 3 अक्तूबर 2010
राष्ट्रकुल खेल २०१०
आज भारत इतिहास के पन्नों पर एक स्वर्णिम अध्याय लिखने की ओर अग्रसर हो रहा है।
पिछले दिनों देश कुछ विषम परिस्थितियों में रहा , पर देशवासियों ने जिस समझदारी का परिचय दिया उसके लिये मैं तहेदिल से हर भारतीय का शुक्रिया अदा करती हूँ । राष्ट्रकूल खेलों को सफल बनाना हम सभी की जिम्मेदारी है ।
मै ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि वो इस आयोजन को सफल और यादगार बनाने की हम सबको हमारी दुआ कुबूल करें ।
खेल में भाग लेने वाले सभी खिलाडियों को हमारी शुभकामनायें ।
आज कुछ कर दिखाने का फिर से वक्त हाथ में आया है
दुनिया में परचम लहराने का समय फिर से आया है
भारतीय क्या होते है बतलाने का वक्त फिर से आया है
खेल खेल कर विश्वविजयी बनने का समय फिर आया है
ये खुदा प्रार्थना आप हमारी स्वीकार करें
हे ईश्वर दुआयें आप हमारी मंजूर करें
भारत को इक नयी ऊँचाई पर हमें पहुँचाना है
हम करें ऐसा की हर कोई हम पर गुरूर करे ।
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जियो उठो आगे बढ़ो जय हो...............
जवाब देंहटाएंहमारी भी यही प्रार्थना है..
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