प्रशंसक

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

कुछ ढूँढ रही हूँ

इस अंजान शहर में कोई अपना ढूँढ रही हूँ |
कुछ नही अपनी जिन्दगी का मुकद्दर ढूँढ रही हूँ ||

किसको फुरसत है जो पल भर साथ बैठ सके |
जो मेरे साथ चल सके वो डगर ढूँढ रही हूँ ||

खुशी के जश्न मनाने को तो लोग मिल ही जायेंगें |
समझ पाये जो मेरे गम वो नजर ढूँढ रही हूँ ||

ये सोच कर आये है लोग ना भूल सकें मुझको |
सुर्खियों में जो मुझे ला दे वो खबर ढूँढ रही हूँ ||

सुना है के ये शहर किसी को मायूस नही करता |
मेरी उम्मीदों को दे जो किनारे वो लहर ढूँढ रही हूँ ||

अक्सर खोई हुयी चीजें ही लोग खोजते है जहाँ में |
जिसमें खो दूँ मैं खुद को वो भंवर ढूँढ रही हूँ ||

13 टिप्‍पणियां:

  1. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

    जवाब देंहटाएं
  2. चर्चा मंच के योग्य मेरी रचना को समझने के लिये आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  4. जिन ढूडा तिन पाइया. तुम्हे वह सब कुछ मिलेगा जो तुम चाहती हो. दिन प्रतिदिन निखरती हुयी रचनाये

    जवाब देंहटाएं
  5. अक्सर खोई हुयी चीजें ही लोग खोजते है जहाँ में |
    जिसमें खो दूँ मैं खुद को वो भंवर ढूँढ रही हूँ

    बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
  6. Bahut hi accha likha hai ........ chachamancha par pahunchne ke liye bahut bahut badhayi aur Navratri ki Hardik Shubhkaamnaayein!!!

    जवाब देंहटाएं
  7. मन के भावो को खूबसूरत शब्दों का जमा पहनाया है आपने ..प्रभावित करती है आपकी रचना.सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  8. अक्सर खोई हुयी चीजें ही लोग खोजते है जहाँ में |
    जिसमें खो दूँ मैं खुद को वो भंवर ढूँढ रही हूँ

    बहुत खूबसूरत रचना!

    जवाब देंहटाएं
  9. भावो के मोतीयो की मुक्तामाला!! पंक्ति दिल की तह तक जाती है ..बहुत शुक्रिया आपका.

    जवाब देंहटाएं
  10. सुना है के ये शहर किसी को मायूस नही करता |
    मेरी उम्मीदों को दे जो किनारे वो लहर ढूँढ रही हूँ |


    बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ हैं...

    जवाब देंहटाएं
  11. ये सोच कर आये है लोग ना भूल सकें मुझको |
    सुर्खियों में जो मुझे ला दे वो खबर ढूँढ रही हूँ ||

    सुना है के ये शहर किसी को मायूस नही करता |
    मेरी उम्मीदों को दे जो किनारे वो लहर ढूँढ रही हूँ ||

    अक्सर खोई हुयी चीजें ही लोग खोजते है जहाँ में |
    जिसमें खो दूँ मैं खुद को वो भंवर ढूँढ रही हूँ ||

    क्या बात है .....!!
    एक से बढ़कर एक शे'र कहे हैं आपने .....
    जिसमें खो दूँ मैं खुद को वो भंवर ढूँढ रही हूँ...ने तो लाजवाब कर दिया .....
    पर ये नाम के बिना सबकुछ अधूरा सा लगा .....
    आप नाम तो बता दें पहचान हम खुद बना लेगें .....

    जवाब देंहटाएं
  12. हरकीरत जी मेरा नाम अपर्णा त्रिपाठी है । कर्म से मैं एक इंजीनियरिंग कालेज में अध्यापन का कार्य करती हूँ । आपकी रचनाओं की मैं नियमित पाठिका हूँ । उम्मीद करती हूँ पहचान का ये सफर एक नयी मंजिल तक पहुँचेगा ।
    शुभकामनाओं सहित

    अपर्णा त्रिपाठी

    जवाब देंहटाएं

आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

GreenEarth