हर सुबह इक आस लिये
पढती हूँ अखबार ।
शायद आज ना छपा हो कोई
हत्या लूट का समाचार ॥
हर पेज पर मिल जाता नित्य
दुखद खबरों का अम्बार ।
शेयर से भी तेज बढता जाता
देश में अब व्याभिचार ॥
मौन खबरों में छुपी होती
चीख दर्द और हाहाकार ।
ताक पर धरे जा रहे
प्रतिदिन भारतीय संस्कार ॥
लड रहे संसद में नेता
बिखर रहे परिवार ।
पर आर्थिक पृष्ठ कहता
बढ रहा देश में व्यापार ॥
फिर भी यही आस लिये
पढती हूँ अखबार ।
शायद आज ना छपा हो कोई
हत्या लूट का समाचार ॥
चित्र के लिये गूगल का आभार
पसंद आया यह अंदाज़ ए बयान आपका. बहुत गहरी सोंच है
जवाब देंहटाएंआज की दुनिया का कटु शाश्वत वास्तविक सत्य ..
मौन खबरों में छुपी होती
जवाब देंहटाएंचीख दर्द और हाहाकार ।
ताक पर धरे जा रहे
प्रतिदिन भारतीय संस्कार ॥
आज के समय की विसंगतियों को बखूबी लिखा है ..अच्छी रचना ..
मौन खबरों में छुपी होती
जवाब देंहटाएंचीख दर्द और हाहाकार ।
ताक पर धरे जा रहे
प्रतिदिन भारतीय संस्कार
Bahut khoob ajkal aisi hi
khabron se ate rahte hain Akhbar....
बहुत अच्छा..............हर आम आदमी का यही दर्द है आज .....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाये ...
very nice post
जवाब देंहटाएंसच है , अख़बार तो ऐसी ही खबरों के भरे होते है .पढ़ कर अच्छा भला मूड ख़राब हो जाता है .
यथार्थ का सुंदर चित्रण है आपकी रचना !
जवाब देंहटाएंab to akhbaar hai bekaar
जवाब देंहटाएंkuch baaton ke siwa ab janne ko raha hi kya hai
सच्चाई से लबरेज़ है आपकी कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
भीगा-भीगा सा क्यों है अख़बार
जवाब देंहटाएंअपने हॉकर को कल से चेंज करो
"पांच सौ गाँव बह गए इस साल"
-- गुलज़ार
क्या करेंगी, अखबार में ऐसी ख़बरें पढ़ना अब एक आदत सी हो गयी है...इसलिए तो हम ज्यादातर स्पोर्ट्स, फिल्मों के सेक्सन पढ़ लेते हैं :)
कम से कम थोड़ी अच्छी ख़बरें तो पढूंगा :) :)
वो भी क्या करें
जवाब देंहटाएंपेट पालतें हैं
ताज़ा पोस्ट विरहणी का प्रेम गीत
मौन खबरों में छुपी होती
जवाब देंहटाएंचीख दर्द और हाहाकार ।
ताक पर धरे जा रहे
प्रतिदिन भारतीय संस्कार ॥
bahut hee gabheer rachna...badhayi
आज के हालत पर बढ़िया रचना...कविता अच्छी लगी..शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता अपर्णा जी , समाचार पत्रों में ज्यादातर यही पढने को मिलता है .
जवाब देंहटाएं....सही कहा आपने!..अखबार हमारे जॉवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है!..सुंदर आलेख, धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 02-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
अच्छा लिख रही हैं ...शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंसंगीता जी मेरी रचना को चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर लाने का बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआपसे अनुरोध है कि कृपया मेरी रचनाओं में सुधार के लिये मेरा मार्ग दर्शन कीजिये ।
दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाये !कभी यहाँ भी पधारे ...कहना तो पड़ेगा ................
जवाब देंहटाएंआज के सच को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है।
जवाब देंहटाएंanother milestone creation
जवाब देंहटाएंwell done chhutkee
सार्थक रचना!
जवाब देंहटाएंऔर हां, आप तो बड़ी लगती हैं, मिश्र जी ने छुटकी क्यूँ कहा?
हा हा हा...
आशीष
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पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
अपने परिवेश में मौजूद अंतर्विरोधों से जूझते संवेदनशील मन की अंतर्व्यथा दर्शाती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
क्या बात है !
जवाब देंहटाएंसच को शब्दों में बांधकर आसानी से सामने रखा दिया आपने
"फिर भी यही आस लिये
जवाब देंहटाएंपढती हूँ अखबार ।
शायद आज ना छपा हो कोई
हत्या लूट का समाचार ॥"
ये हम सबकी भी आस और दुआ है......संवेदनशील रचना...
एक अलग अंदाज..पसंद आया!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .... समाज का आइना होता है अखबार ... और अगर समाज में यह सब है तो देखना तो पढ़ेगा .... पर आपकी भावना हर किसी के मन की भावना ही है .... अछा लिखा है ....
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ...
लड रहे संसद में नेता
जवाब देंहटाएंबिखर रहे परिवार ।
पर आर्थिक पृष्ठ कहता
बढ रहा देश में व्यापार ॥
एक साथ इतनी विसंगतियाँ चार पंक्तियों में
लाजवाब