जून की तपती धूप में
वो बना रही थी मकान |
अपने कलेजे के टुकडे को
दे कर कुछ टूटा समान ||
उन पत्थर के टुकडों से
वो खेल रहा था ऐसे |
उसके हाथों में आया हो
कुबेर का खजाना जैसे ||
पर हाय ये क्या हुआ
वक्त को ये रास ना आया |
काला नाग बन करके
बालक के सामने आया ||
नजर पडी माँ की नाग पर
और मालिक की उस माँ पर |
दौडी वो बच्चे की तरफ
और मालिक झपटा उस पर ||
एक ही पल में विधाता नें
कैसा संग्राम रचाया |
उस बेचारी माँ को
ऐसा कठोर पल दिखलाया ||
उधर नाग ने डसा जीव को
इधर मानुष ने मानुष को |
हतप्रभ थे सभी देख वक्त की
ऐसी निष्णुर साजिश को ||
माना नाग से नही कर सकते
हम उम्मीदें मानवता की |
पर क्या ये उचित है कि तजे
इंसा मर्यादायें सब मानवता की ||
हाय ! बन क्यों जाता मानुष
इतना भीषण दानव |
क्या आने वाली पीढी कहेगी
कल सच में तुमको मानव ||
कैसे बन जाता है इंसा
हैवान इंसान के भेष में |
ईश्वर की इस धरती पर
ऐसा भी होता है इस देश में ||
सच , अच्छी भावनाएँ उभर कर आई हैं
जवाब देंहटाएंआपकी रचना में.
माना नाग से नही कर सकते
हम उम्मीदें मानवता की |
पर क्या ये उचित है कि तजे
इंसा मर्यादायें सब मानवता की ||
- विजय तिवारी " किसलय " हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर
सुन्दर सन्देश देती हुई रचना
जवाब देंहटाएंकैसे बन जाता है इंसा
जवाब देंहटाएंहैवान इंसान के भेष में |
ईश्वर की इस धरती पर
ऐसा भी होता है इस देश में ||
इंसान अगर संवेदनशील न हो तो कवी नहीं हो सकता ....
आपकी कविता में जो चिंतन है समाज के प्रति , इंसान के प्रति वही दिशा देती है ....
हाँ और इल्तजा है आप अपने असली नाम से लिखें जो भी लिखना है ....क्योंकि बाद में यही नाम रह जायेगा ....
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जवाब देंहटाएंप्रिय हीर जी इस अत्यंत संवेदनशील ब्लागर का नाम कुमारी अपर्णा है. इसकी प्रकृति पलाश सरीखी है. और एक बात बताऊ ये ,मेरी छुटकी भी है.अब तो आपको कोई शिकायत नहीं होगी. इस बात के लिए हम आपका आभार व्यक्त करते है.
जवाब देंहटाएंअच्छी भावनाएँ उभर कर आई हैं
जवाब देंहटाएंआपकी रचना में.
आज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।