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मंगलवार, 11 सितंबर 2012

एक गजल तेरे नाम............



हूँ जरा नादां मगर मैं जानती ये बात हूँ

तू मेरी पहचान है और मैं तेरी पहचान हूँ


हर घडी हर पल जो मेरे साथ चलता वक्त सा

लगती कभी उसके सी मैं लगता वो मेरे अक्स सा

दिल से उसको पूजती,जिसके दिल का मैं अरमान हूँ

हूँ जरा नादां मगर...


दूर जब उससे रहूँ, खुशबू सा तन मन में बसे

वो मेरी मुस्कान बन, अँखियों के दरपन से हँसे

प्रीत का दीपक है वो, मै दीप का अभिमान हूँ

हूँ जरा नादां मगर...





24 टिप्‍पणियां:

  1. दूर जब उससे रहूँ, खुशबू सा तन मन में बसे
    वो मेरी मुस्कान बन, अँखियों के दरपन से हँसे
    अक्सर थोड़ी दूरियां प्रेम को मिटती नहीं है , खुशबू सी रच बस जाती है !
    खूबसूरत भाव !

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  2. ये अतिशय प्यारी ग़ज़ल मेरे साथ जाने को मचल रही है
    और मैं मना भी नहीं कर पा रही हूँ
    आप भी आइये न... नई-पुरानी हलचल में
    शनिवार दिनांक 15 सितम्बर को..आपकी पूर्व परिचित जगह
    नई-पुरानी हलचल में
    प्रतीक्षा रहेगी आपकी
    सादर
    यशोदा

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  3. दूर जब उससे रहूँ, खुशबू सा तन मन में बसे
    वो मेरी मुस्कान बन, अँखियों के दरपन से हँसे ...

    बहुत खूब ... प्रेम दिलो जान तक छाया हो तो अक्सर ऐसा होता है ...
    प्रेम भरी ...

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  4. प्रीत का दीपक है वो, मै दीप का अभिमान हूँ ,...बहुत कोमल भावों की रागात्मक रचना बीन वो मेरी है मैं बीन की झंकार हूँ .,राग मैं तेरा हूँ और गायन - हार भी .
    ram ram bhai
    बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
    हाँ !यह भारत है

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  5. "वो मेरी मुस्कान बन ,अँखियों के दरपन से हँसे" बहन ग़ज़ल तो मेरे दिल को छू गयी । बहुत सुन्दर ।

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  6. बहुत सुन्दर ..हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें ...

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  7. बहुत सुन्दर ..हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें ...

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  8. वाह सीप में मोती सा रिश्ता ....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  9. बहुत सुंदर व मधुर रचना !:-)
    ~धड़कन बन बसती जिस दिल में...
    उस धड़कन की सुरीली तान हूँ... ~

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  10. अति सुंदर ...
    मंजु
    (manukavya.wordpress.com)

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  11. आपकी बेहद खूबसूरत नज्म भी खुशबू सी रच बस रही है ।

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  12. बहन टिप्पणी सम्बंधित समस्या को आशीष के सहयोग से दूर कर दिया | धन्यवाद सुझाव के लिए |

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  13. उत्तर
    1. बहुत सुन्दर सृजन, सादर.

      कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारने का कष्ट करें.

      हटाएं

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