अरुणिमा , मेरी कहानी
की मुख्य पात्र। मेरे जीवन का केन्द्र बिन्दु। जीवन के हर उतार चढाव की साथी।
बहुत समय से सोच रही
थी कि अपने और उसके जीवन को कागज के पन्नों पर अंकित करूं, मगर हमेशा डरती थी कि कही
ऐसा ना हो कि मेरी लेखनी उसके व्यक्तित्व के साथ न्याय ना कर सकी तो...
और फिर लिखने का ख्याल
मन से हटा देती।
और फिर आज निर्णय ले
ही लिया, वो भी उसके कहने पर । कितनी मासूमियत से उसने कहा था- जीजी आप तो इतना अच्छा
लिखती हैं, कभी अपनी किसी कहानी में हमारा भी नाम लिख दीजिये, इसी बहाने हम भी छप जायेंगें
। वो ये नही जानती थी कि मैं सिर्फ उसका नाम ही नही उसकी पूरी जिन्दगी को लिख देना
चहती थी मगर कभी खुद को इस स्तर का अपनी ही नजर में नही पाती थी ।
अरुणिमा यूँ तो उम्र
में मुझसे बहुत छोटी थी, मगर बाकी हर चीझ में मुझसे बडी थी, मुझे कोई भी परेशानी हो
- छोटी या बडी , उसके पास हर परेशानी का कोई ना कोई हल जरूर होता था।
क्रमशः .........
हम भी मिलना चाहेंगे अरुणिमा से !
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा रहेगी..
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (8-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
उत्कृष्ट लेखन !!
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा बड़ा दी है अरुणिमा से मिलने की ...
जवाब देंहटाएंअभी आगे पढ़ना है !
जवाब देंहटाएं