प्रशंसक

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

वरना तो अब तलक .........


घनी जुल्फों की छाँव क्या मिली, 
अंधेरों के कायल हो गये, 
वरना तो अब तलक हम भी,
उजालों के तलबगार थे..........

नजरें उनसे क्या चार हुयी
सादगी के कायल हो गये,
वरना तो अब तलक हम भी,
तितलियों के तलबगार थे..........

बलखा के चलते क्या देखा उन्हे
पायल के कायल हो गये,
वरना तो अब तलक हम भी,
घुंघरुओं के तलबगार थे..........

दिल में उनकी जो ख्वाइश जगी
मोहब्बत के कायल हो गये,
वरना तो अब तलक हम भी,
महफिलों के तलबगार थे..........

हम मिलकर उनसे बिछडे क्या 
प्यासी शाम के कायल हो गये,
वरना तो अब तलक हम भी,
रात - ए - मैखानों के तलबगार थे..........

10 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे ही होना था कायल !
    अच्छी ग़ज़ल !

    जवाब देंहटाएं
  2. हम भी कायल हो गए..
    बहुत सुन्दर रचना .

    जवाब देंहटाएं
  3. हम भी कायल हो गए..
    बहुत सुन्दर रचना .

    जवाब देंहटाएं
  4. एकदम सटीक पंक्तियाँ
    ये अंदाज पसंद आया

    जवाब देंहटाएं

आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

GreenEarth