एक चीज मागूं
देखो मना मत करना
मुझे अपने हिस्से की
थोडी सी धूप दे दो
चाहती हूँ उसमें
खुद को सेंकना
जिसमें तपा कर
तुमने खुद को
बना लिया है
कुन्दन
बनना चाहती हूँ
तुम सी
जानती हूँ
नही बन सकती तुम सी
फिर भी
एक कोशिश करनी है
तुझमें मिलना है मुझे
बन जाना है मुझे
तेरी परछाई
साथ चलना है बनकर
तुम्हारी हमकदम
बताओ क्या दे सकोगे मुझे
अपने हिस्से की धूप
बना सकोगे मुझे
अपनी छाया
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
सुनो,
तुमने कहा था एक बार
कुछ देने के लिये
आज मांगती हूँ,
मुझे चाहिये
तुम्हारी बारिश की
चंद बूंदे
भिगोना है
सूखा अतृप्त मन
उगानी है
प्रीत की फसल
बंजर हो चली
आशाओं पर
देखनी है
लहलहाती फसल
भावनाओं की
जिन्हे चाहिये
चंद बूंदे
तुम्हारी बारिश की
बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना :)
जवाब देंहटाएंथोड़ी सी धूप और थोड़ी तुम्हारी बारिश। …
जवाब देंहटाएंसुन्दर कल्पना...
बढ़िया काल्पनिक प्रस्तुति .............बहुत ही सुन्दर और साधारण शब्दों में!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट को इतने विलम्ब से देख पाने का अफसोस हो रहा है ..... बहुत ही अच्छा लिखा है
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