जाने कबसे इन आँखों में
तेरा ख्वाब सजाये बैठे हैं
बात करे, हम कुछ भी
तेरा जिक्र छुपाये बैठे हैं
जुल्फों की बदली में इक
सावन को बसाये बैठे हैं
हाथों की चंद लकीरों में
तेरा नाम लिखाये बैठे है
हथेली की हरी हिना में
खुशबू तेरी महकाये बैठे हैं
हर आती जाती सांसों में
तेरी आस लगाये बैठे हैं
पल पल बीत रहे लम्हों में
तेरी उम्मीद जगाये बैठे हैं
संग बिताये, चार पलों में
हम इक उम्र बिताये बैठे हैं
तनहा घनी अंधेरी रातों में
यादों के दिये जलाये बैठे हैं
क्या खबर तुझे, हम तुझमें
अपनी दुनिया बसाये बैठे हैं
बहुत खूब..।।
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसंग बिताये, चार पलों में
हम इक उम्र बिताये बैठे हैं !
बहुत खूब !
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसंग बिताये, चार पलों में
जवाब देंहटाएंहम इक उम्र बिताये बैठे हैं
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ अपर्णा जी
दिल को छू लेनी लेनी वाली अत्यंत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबस चाहे वो आएँ न आएँ अपनी इस दुनिया को (बगिया को) वीरान न होने दिजिए ताकि भाव के कोयल. कविता के कूक ऐसे ही हम तक पहुँचाते रहें ।
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