चाह रहा मन आज लिखना
जो बचा सके इंसानियत
एक लकीर खींचना उन दिलों में
जो पूज रहे है हैवानियत
जो बचा सके इंसानियत
एक लकीर खींचना उन दिलों में
जो पूज रहे है हैवानियत
कैसे मैं समझाऊं उनको
ये नही खुदा की चाहत
खून बहा कर नही मिली है
कभी किसी को राहत
बहुत हो चुका, अब तो छोडो
बदले की आग में जलना
गोली बारुद के ढेरों पर
अब सौदे मौत के करना
बदले की आग में जलना
गोली बारुद के ढेरों पर
अब सौदे मौत के करना
जन्मा नही तुमको माँ ने
बेगुनाहों का रक्त बहाने को
क्यों दागदार फिर करते
तुम उसके दूध पिलाने को
याद करों उन दिन को जब
तेरे रोने पर माँ रोई थी
तुझे सुलाने की खातिर
रात सारी नही वो सोई थी
तेरे रोने पर माँ रोई थी
तुझे सुलाने की खातिर
रात सारी नही वो सोई थी
बता भला, अब कैसे सोयें वो
जिनके नन्हों को तूने सुलाया है
कैसे खुदा बेहरबां हो तुझ पर
बेबस ममता को तुमने रुलाया है
है वक्त अभी भी, कुछ तो सोचो
कुछ तो सच्चे काम करो
छोडो ये बन्दूक तमंचे
इंसानियत का सम्मान करों
कुछ तो सच्चे काम करो
छोडो ये बन्दूक तमंचे
इंसानियत का सम्मान करों
रो रो कर कह रहा अल्लाह
अब रक्त धरा पर और नही
मत मार ऐ जालिम मासूमों को
सब मेरे बच्चे हैं कोई गैर नही
बस आह !
जवाब देंहटाएंAb bas bahut hua...ab aur nhi bas
जवाब देंहटाएंbahut sahi likha hai apne
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