काश और शायद
शब्द हैं, कुछ ना हो पाने के
फर्क है, सिर्फ अहसासों का
एक में नाउम्मीदी का कफन
दूजे में उम्मीद की सूरत दिखती है
काश! मुझे वो मिल जाते
शायद, वो मुझको मिल जाये
एक में ना मिल पाने का दुख
दूजे में मिलने की आस झलकती है
काश ! ऐसा हो जाता
शायद ऐसा हो जाय
एक में हताशा निराशा
दूजे में कर्मठता की राह निकलती है
काश ! ये दिन बदल जाते
शायद ये दिन बदल जाये
एक में जीवन की अन्तता
दूजे में अनन्त जिन्दगी मिलती है
काश डुबाये अन्धकार में
शायद भोर का तारा है
एक काल चक्र में खोया
दूजे में गति की कल्पना संवरती है
काश है वो परछाई जो
पीछे पीछे चलती है
शायद ऐसा साया जिसमें
आगे बढने की इच्छा पलती है
काश और शायद तो
दो पहलू है जीवन जीने के
एक कहता और भरता आहे
दूजे में हौंसलों की पिटारी खुलती है
सच है काश और एहसास हैं ही कुछ ख़ास।
जवाब देंहटाएंकाश ! ये दिन बदल जाते
जवाब देंहटाएंशायद ये दिन बदल जाये
एक में जीवन की अन्तता
दूजे में अनन्त जिन्दगी मिलती है
काश !! में बहुत कुछ छुपा होता है !!
बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : पीता हूं धो के खुसरबे – शीरीं सखुन के पांव
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-12-2014) को *सूरज दादा कहाँ गए तुम* (चर्चा अंक-1841) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शायद ये दिन बदल जाये
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