पग डगमग कितने कर लो
पथ भ्रष्ट नही कर पाओगे
भले बिछा लो शूल मार्ग में
पर नष्ट नही कर पाओगे…………………..
कठिनताओं से हाथ मिलाना
प्रिय खेल रहा है बचपन
का
दुष्कर को ही लक्ष्य साधना
इक ध्येय रहा है जीवन
का
तन पर प्रहार कितने
कर लो
मन क्लांत नही कर पाओगे
पग डगमग कितने कर लो
पथ भ्रष्ट नही कर पाओगे…………………………
उर में घातक हथियार
लिये
जिव्हा पर प्रेम का
अंकुर है
पुष्प से कोमल हम कहकर
रस हेतु भ्रमर सा आतुर
है
तोडों या कुचलो तुम
कलियां
गन्ध नष्ट नही कर पाओगे
पग डगमग कितने कर लो
पथ भ्रष्ट नही कर पाओगे…………………………
विश्वास किये हम साथ
चले
आघात की तुमने राह चुनी
सीता की चाह धरी मन में
ना राम की कोई बात सुनी
मै
तत्पर हूँ अग्निपरीक्षा को
तुम
वनवास नही कर पाओगे
पग डगमग कितने कर लो
पथ भ्रष्ट नही कर पाओगे…………………………
बहुत सुन्दर ! सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंThanks Shadhna Di
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 20 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-03-2017) को
जवाब देंहटाएंचक्का योगी का चले-; चर्चामंच 2608
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thanks Sir, your words are precious for me.
जवाब देंहटाएंउर में घातक हथियार लिये
जवाब देंहटाएंजिव्हा पर प्रेम का अंकुर है
पुष्प से कोमल हम कहकर
रस हेतु भ्रमर सा आतुर है
तोडों या कुचलो तुम कलियां
गन्ध नष्ट नही कर पाओगे
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ। कमाल का वर्णन
शुरुआत से के हर शब्द ... बेहद लाजवाब लिखा है आपने ... आप इस तरह लिखती रहे ..शुभकामनायें !!!
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