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मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

उफ ये बडे आदमी


सुना था
बहुत बडे आदमी थे तुम
फिर क्यों फर्क पढ गया तुम्हे
गर मुझ जैसे छोटे से व्यक्ति ने
नही किया सलाम तुम्हे झुक कर
क्यों रात भेज अपने चार आदमी
बुलवा कर अपनी कोठी
झुका कर अपने पैरों
तुम्हे बताना पडा
तुम वाकई में हो 
बहुत बडे आदमी

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शहर में
शोर है
धूमधाम है
कि जन्मदिन है आज
नेता जी का
लोग कहते हैं जिन्हे
बडे सरकार
जी जान लगा रहे हैं कार्यकर्ता
इन्ताम है
विदेशी सुरा और सुन्दरी का
दिखने को दिख रहा है
उत्साह
मगर
इस उल्लास के पीछे
सहमा है
एक डर
दुबक रही है
एक दहशत
आंखों में सभी की
तैर रहा है
पिछला साल
कैसे एक छोटी सी चूक
के परिणाम में
काटा गया था
रग्घू का सर
केक के बाद

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साहब
आप देवता है
आपकी दया चाहिये
कर रहा हूँ बिटिया की शादी
जो सम्भव ही नही
आपकी मदद के बिना
देवता ने प्रसन्न हो
देखा
चरणों में पडे मनसुख को
चेहरे पर खेल गयी
बहुअर्थीय मुस्कान
शब्द गूंजे
मैं देवता हूँ
तो कहो
क्या लाये हो प्रसाद में
बेचारा मनसुख
पड गया सोच में
आंखों में आ गया
अपनी कुंवारी बेटी का चेहरा
देखा एक बार फिर
आस भरी नजरों से
शायद कुछ हो जाय
वो मानव जिसे बनाया गया था
देवता 
था तो एक मानव ही
आ ही गयी उसे दया
ओढ मुख मंडल पर 
गम्भीर गम्भीरता
दिया आदेश
ठीक है
रात में भेज देना बिटिया को

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बडे लोग ही देख सकते हैं
बडे भव्य सपने
छोटे लोगो के हिस्से तो
सिर्फ आते हैं
सपने
कल की रोटी के

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दरबान
सुबह से रात तक
सैकडों को
करता है
झुक कर सलाम
और आंक लेता है
इंसान के अंदर का इंसान
अंदर जाने वाले के
सलाम को लेने भर के अंदाज से

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बडे मजबूर होते हैं
अक्सर बडे लोग
बडी मुश्किल में रहते हैं
अक्सर बडे लोग
बडी आसानी से ले सकते है
किसी की भी जान
फिर उस मामूली जान की
चुका एक बडी कीमत
कमाते है बडा नाम
बन जाते हैं

कुछ और बडे 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07-12-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2810 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आप की रचना को शुक्रवार 8 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...

    जवाब देंहटाएं
  3. वास्तविकता जिसे बयान करने के लिए बहुत हिम्मत लगती है....

    जवाब देंहटाएं

आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

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