हर चीज जगह पर होना,
हमेशा अच्छा नही लगता
सलीकों में जिन्दगी जीना, हमेशा अच्छा नही लगता
कुछ आवारगी है जरूरी,
मस्ती से जीने के लिये
अदबों लिहाज से रहना,
हमेशा अच्छा नही लगता
कट कर तो गिरे पतंगें,
किसी अजनबी की अटारी
उड के चूमना आसमान,
हमेशा अच्छा नही लगता
हों थोडी सी लापरवाहियां,
हों हिदायतें बुजुर्गों की
सधे कदमों से चलना,
हमेशा अच्छा नही लगता
ओढ़ लो कभी यूं ही, बचपन की नासमझी
अकल का पैरहन, हमेशा अच्छा नहीं लगता
ओढ़ लो कभी यूं ही, बचपन की नासमझी
अकल का पैरहन, हमेशा अच्छा नहीं लगता
कुछ कच्चा पक्का बने, खाये कुछ मीठे से उलाहनें
उम्दा तारीफों का तडका,
हमेशा अच्छा नही लगता
इन्तजार में महबूब,
जरा पलकें तो बिछायें
वक्त पर पहुचना, हमेशा
अच्छा नही लगता
कुछ नाराजगी भी हैं
जरूरी मोहब्बत के लिये
हर बात मान जाना, हमेशा
अच्छा नही लगता
वाह सुन्दर गजल
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार
(12-06-2020) को
"सँभल सँभल के’ बहुत पाँव धर रहा हूँ मैं" (चर्चा अंक-3730) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
वाह, वाह!क्या बात है !बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गीतिका।
जवाब देंहटाएंवाह शानदार ग़ज़ल हमें अच्छा नहीं लगता..
जवाब देंहटाएंपर हमें बहुत अच्छी लगी आपकी ये उम्दा पेशकश।
वाह!!
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंशानदार ग़ज़ल
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