बेटा, एक बात कहनी थी, जरा इधर तो आओ- मिस्टर माथुर की आवाज में
लडखडाहट थी। पापा आपको भी हमेशा मेरे ऑफिस जाते समय ही सारी बातें याद आती हैं,
शाम को आता हूँ, तब सुन लूंगा आपकी बातें। विनीता जल्दी करो यार, तुमको पापा के घर
छोडता हुआ ऑफिस -चला जाऊंगा। पीछे वाले कमरे से आवाज आई- बस पाँच मिनट रुकिये, आती
हूँ। रोहन कुर्सी में बैठकर मोबाइल पर कुछ स्क्रॉल करने लगा। माथुर जी बस मन में
ही कह कर रह गये कि बेटा मेरी बात तो एक मिनट की भी नहीं थी। करीब पन्द्रह मिनट
बाद विनीता कमरे से निकलकर बोली- अब चलोगे भी या मोबाइल ही देखते रहोगे। पापा आप
गेट बन्द कर लीजिये, कह कर दोनो निकल गये।
माथुर जी घर में दीवारों और दीवार में लगी पत्नी की तस्वीर के साथ रह
गये। विनीता यूं तो हाउस वाइफ ही थी, मगर अक्सर ही सारा दिन घर से बाहर ही होती
थी, कभी अपने मायके, कभी सहेलियों और कभी शॉपिंग पर।
माथुर जी को भी घर पर अकेले रहने की आदत सी हो गयी थी। ना कोई खास
जरूरते, ना कोई खास खवाइशें। मिलने वालों में केवल दो मित्र ही बचे थे, उनमें से
एक चड्डा जी पिछले चार महीनों से अपने बेटे के पास कनाडा गये हुये थे, हाँ पांडे
जी जरूर हर मंगलवार की शाम प्रसाद लेकर आते थे जिससे एक दो घंटा कब निकल जाता पता
ही न चलता था। बाकी रोज तो कुछ समय अखबारों के साथ बीतता, कुछ नॉवेल्स के साथ और
कुछ समय वो अपनी पत्नी के साथ बिताते थे। पैरालिसिस के अटैक के बाद से उनका अकेले
घर से निकल पाना सम्भव ही नहीं था। बस किसी तरह से अपने दैनिक काम वो कर लिया करते
थे।
कल बातों बातों में उनकी पत्नी ने एक फरमाइश कर दी थी- घर में उनकी
और अपनी एक कलर्ड तस्वीर लगाने की। बात ये थी कि माथुर जी की शादी की तस्वीर श्वेत
श्याम थी, और कल माथुर जी बोले- जानती हो लाल साडी में तुम ऐसे लगती थी जैसे
रजनीगंधा के फूलों के बीच लाल गुलाब। मगर अब कहाँ इस जनम में तुम्हारी वो छवि
देखने को मिलेगी। तभी उनकी पत्नी ने कहा- अरे ये कौन सी बडी बात है- रोहन से कह
देना वो हमारी शादी वाली तस्वीर को कलर्ड बनवा लायेगा। फिर देख लेना मुझे जी भर
कर इसी जनम में, और कह कर लजा गयीं थी, जैसे आज ही ब्याह कर आईं हों।
आज कई दिन बीत गये थे, मगर रोहन के पास माथुर जी की बात सुनने का
वक्त नहीं मिला था। जब भी उनकी पत्नी पूंछती रोहन को फोटो बनने दी या नहीं, तो कह
देते अरे भूल गया, कल कह दूंगा। और उनकी पत्नी उलाहना देतीं- आपको तब भी कुछ याद
नहीं रहता था और आज भी याद नहीं रहता।
माथुर जी कैसे कहते कि उनके बेटे के पास उनके लिये अब वक्त नही। आज
दो महीने हो रहे थे, जब रोहन शाम को बात सुनने की बात कह कर निकल जाता था, और
माथुर जी शाम और सुबह की प्रतीक्षा के बीच दिन गुजार देते थे। मगर ना कभी सुबह के दो मिनट निकले ना कभी शाम आई।
आज प्रसाद के साथ साथ पांडे जी ने माथुर जी को एक तस्वीर भी दी,
जिसमें तीनो मित्र एक साथ कॉलेज के गेट पर खडे थे। माथुर जी बोले- अरे पांडे जी यह
तस्वीर तो चड्डा जी के भाई ने खींची थी ना, आपको कहाँ से मिली और ये तो ब्लैक एंड
व्हाइट फोटो थी ना। पांडे जी बोले - हाँ माथुर साहब आप सही कह रहे हो। ये चड्डा
जी ने इन्टनेट से बनवा कर भेजी है, एक कॉपी आपके लिये और एक मेरे लिये। माथुर जी के
चेहरे पर एक खुशी सी चमक गयी। बोले- पांडे जी क्या आप जानते हो ये इन्टरनेट से
फोटो बनवाना? पांडे जी बोले- नही, मै तो नही जानता, हाँ मेरी पोती जरूर जानती है।
कहिए बात क्या है? तब उन्होने अपनी शादी की फोटो बनवाने वाली बात कही।
पांडे जी बोले- माथुर जी आपकी फोटो बन गयी समझो, अच्छा मै एक काम
करता हूँ, मै आपकी ये ब्लैक एंड व्हाइट वाली ले जाता हूँ और अगले मंगल को आपकी और
भाभी जी की नई फोटो लेता आऊंगा।
एक हफ्ते बाद दीवार पर कलर्ड फोटो थी, मगर अभी तक ना रोहन को बात
सुनने का समय मिला था, ना उसकी निगाह में रजनीगंधा के बीच कोई गुलाब था। हाँ माथुर जी के पास जरूर अब ना रोहन से कहने के लिये कोई बात नहीं थी ना ही रोहन का आसरा।
सार्थक कथा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी
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