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सोमवार, 24 अगस्त 2020

सगे- सम्बंधी

आखिर क्या है सम्बंध 
सगे- सम्बंधी में
या बिना संबंध के ही
रहते हैं एक साथ
जैसे रहते हैं कई बार लोग
या दोनों है एक दूसरे के पूरक
क्या इस युग्म में समाहित हैं
वो संबंध भी जिनके मध्य
नहीं है कोई संबंध, संबंध होकर भी
क्या ये मिलकर बनाते हैं परिधि
जिसमें समा सकते हैं
सारे रिश्ते
इक ऐसी परिधि
जिसमें कुछ रिश्ते बंधे तो हैं
सम्बन्ध की डोर से
मगर हैं
भावहीन
जिनके जीवित होने की न है प्रसन्नता
न मृत हो जाने का भय
भावहीन सम्बन्ध झूलते रहते हैं
जीवन और मृत्यु के बीच
अज्ञात सा है इस परिधि का 
केन्द्र बिन्दु
बहुत खोजने पर भी
नहीं दिखता कहीं
मित्रता का भाव
न परिधि पर न परिधि के अन्दर
अवश्य ही मिलेगा
यह कहीं उन्मुक्त आकाश में
विचरता
जो स्वतंत्र होगा
हर दिखावटी बंधन से
जो देगा शरण
सगे-संबंधों से छले
थके मन को
हां यही है केन्द्र बिन्दु
हर सच्चे संबंध का
होकर भी परिधि से बाहर

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-08-2020) को   "समास अर्थात् शब्द का छोटा रूप"   (चर्चा अंक-3805)   पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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