तू भी हमारी तरह
घिरा है अनगिनत तारों से
इनमें से कई हैं अंजाने
कुछ से हूं मै परिचित
मगर कोई एक है जो है
मेरे बहुत करीब
मगर ये हाथ भर की दूरी
सदियों से अपनी जगह है
ना मैं छोड़ पा रही हूं,
झूठा अभिमान
ना तुम भूल पा रहे हो,
कड़वा अतीत
किन्तु टूटता भी नहीं
प्रेम का बन्धन
ना तुमने कोई और राह चुनी
ना मैं कहीं मुड़ कर गई
समय निरपेक्ष रूप से
करता रहा मूल्यांकन
हमारे भावों और स्वभावों का
और फिर कर दिया हमें,
चेतन से जड़
अब चाह कर भी नहीं हो सकते
हम एक इकाई
बस चिरकाल तक
समय से बंधे,
जड़त्व से बंधे
एक हाथ की इस दूरी से
निभाते जाना प्रेम
तू भी हमारी तरह
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना।
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