बीते लम्हों
को बुलाया जा सकता नहीं
डूबी कश्ती
को बचाया जा सकता नहीं
भरम है मेरा
वो याद अब ना आयेगा
वो एक खास भुलाया
जा सकता नहीं
बेहतर था ना जगाते अरमान दिल में
जगी रैन को
सुलाया जा सकता नहीं
मिलते है नसीबों
से, फिक्र करने वाले
लकीरों को तो
मिटाया जा सकता नहीं
कई लोग दिखावों में ही खुश रहते है
इश्क सबको सिखाया जा सकता नहीं
असर खामोशी
का जरा आजमां के देख
उसके लफ्जों को
दबाया जा सकता नहीं
सीख जाते हैं
परिंदे भी साथ रह रह कर
मगरूरो को कुछ
बताया जा सकता नहीं
साथ रहते हैं
गुल के, मगर पैर चीरते हैं
हां शूल को
फूल बनाया जा सकता नहीं
यकीन आज भी मां की परवरिशों पर
सच्चे बंदे को झुकाया जा सकता नहीं
क्यों करती
हो पलाश इंतजार हर घडी
बुत में अहसास
जगाया जा सकता नहीं
अच्छी गजल है।
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