निशा घनी जितनी होगी
भोर धनी उतनी होगी
काले बादल छाये तो क्या
बारिश भी रिमझिम होगी
गिर जाना होता हार नही
क्यूं नियति स्वीकार नहीं
है प्रयास तुम्हारे हाथों
में
क्यों भुज का विश्वास नहीं
ह्र्दय का मत यूं संताप बढा
बन जरा सत्य में लिखा पढा
अब झांक जरा अंतर्मन मे
औरों के माथ ना दोष चढा
हर मार्ग बंद जब होता है
साहस भी साहस खोता है
वह पल होता है परीक्षा का
तब कर्म ही कारक होता है
तो चल समेट ले बल अनंत
सोये सामर्थ्य को जगा तुरंत
है धरा तेरी, यह नभ भी तेरा
कर स्वयं अपने विषाद अंत
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंरचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार
हटाएंप्रेरक कविता, सुंदर भाव।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंरचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार
हटाएंवाह! सुंदर बोध जगातीं पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंरचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 15 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
रचना की सराहना एवं पांच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिये आपका हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत
जवाब देंहटाएंरचना की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार
हटाएंबहुत सुंदर रचना है। प्रेणादायक और प्रगतिकारक...
जवाब देंहटाएंतो चल समेट ले बल अनंत
सोये सामर्थ्य को जगा तुरंत
है धरा तेरी, यह नभ भी तेरा
कर स्वयं अपने विषाद अंत
--ब्रजेंद्रनाथ
आपका आशीर्वाद मेरे लिये अमूल्य है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..कितना कुछ कह दिया ... शब्दों में..
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