१६ अगस्त को देश में एक क्रान्ति की शुरुआत हुयी , अन्ना जी ने आहवान किया और लोगो ने भरपूर समर्थन भी दिया । लाखों लोग आज यह कहते सुने जा सकते है कि " मै अन्ना हूँ "। मगर यह सुनकर मेरे मन में कई सवाल उठते है जिनके सटीक उत्तर शायद आप लोगों से ही मिल सके ....
यह लडाई क्या बिल के पास हो जाने से समाप्त हो जायगी ?
क्या वाकई में देश को नये बिल की जरूरत है ?
क्या एक बिल हमारी मनोवृत्तियां बदल देगा ?
क्या वो आम आदमी जो अन्ना जी के साथ होने का दावा कर रहा है , वो किसी भी मायने मे भ्रष्ट नही है ?
हम भ्रष्टाचार किसे मानते है - सिर्फ घूसखोरी , काला धन जोडना , धोटाला .... ?
क्या सच मे आज आम आदमी भ्रष्टाचार करना नही चाहता ?
क्या हम ईमानदारी से कह सकते है कि हम ईमानदार हैं ?
सरकार हमसे कभी यह नही कहती कि हम भ्रष्टाचार करे , भ्रष्टाचार= भ्रष्ट + आचार । आचरण हमारी जीवन शैली है , हम कैसा व्यवहार करते है चाहे फिर वह परिवार के साथ हो समाज के साथ हो या देश के साथ । नियम कानून हमारे आचरण को कुछ हद कर रोक सकते है मगर हमारी सोच को नही बदल सकते । सोच स्वयं के निश्चय से बदलती है । आज हमे निश्चय की आवशयकता है , कोई हमे भ्रष्टाचार करने कि लिये मजबूर नही कर सकता जब तक हम खुद ना चाहे ।
हम खुद ही तो अपनी सहूलियतों के हिसाब से खुद को बदल लेते है , टिकट खिडकी पर जब आगे खडे है तो किसी को आगे नही आने देगें और अगर पीछे खडे है तो किसी भी तरह जल्दी टिकट लेने की कोशिश करते है ,तब सारे नियम भूल जाते है बस यही याद आता है कि कही ट्रेन ना छूट जाये ।
किसी आफिस मे अगर कोई काम कराना है तो सोचने लगते है कि कोई परिचित मिल जाये तो जल्दी काम करा लें ।
जनरल की टिकट ले कर स्लीपर में यह सोच कर बैठ जाते है कि टी . टी साहब को १०० - १५० दे देगें कभी नही सोचते की पेनाल्टी देगें ।
चार दिन की आफिस से छुट्टी ले लेते है यह सोच कर की ५० रुपये दे कर किसी डाक्टर से मेडिकल बनवालेगें
छात्र आये दिन पेपर आउट कराते है , क्या इसके लिये सरकार कहती है या देश का कानून कहता है
कितने लोग है जो ईमानदारी से टैक्स भरते है , कभी हमने सोचा हम क्यों ऐसा नही कर रहे ।
अन्त मे आखिरी सवाल हम देश में किसे आम आदमी मानते है ?? क्या खुद को देश का आम आदमी आप मानते है , यदि हाँ तो दो मिनट के लिये सोच कर देखिये क्या आप वाकई अन्ना है ? यदि नही तो क्यो ??
एक-एक भी शुरु करे तो,
जवाब देंहटाएंधीरे-धीरे सब सुधर जाये,
लेकिन शुरु तो करे तब ना?
आपने सही कहा है आलेख मे।
जवाब देंहटाएंजहां तक मेरा अपना मानना है कि किसी भी तरह के लोकपाल से आम जनता का कोई भला नहीं होने वाला और न ही इस तरह से भ्रष्टाचार दूर होगा। आवश्यकता हमे सिर्फ अपनी सोच बदलने की है क्योंकि आज भ्रष्टाचार हमारी रग रग मे समा चुका है। अनशन इत्यादि हमे अपनी सोच बदलने के लिए खुद के लिए करने चाहिए न कि संसद पर दबाव डालने के लिए क्योंकि संसद मे जो लोग हैं उन्हें हम ही ने चुन कर भेजा है।
बहुत बढ़िया सवाल उठाया है आपने !
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार का फोबिया उठाकर मीडिया को एक बेहतरीन मसाला दे दिया है ! हर भ्रष्ट आदमी और पार्टी दूसरे को भ्रष्ट बताने में लगा है !
जो हालात हैं, कुछ दिनों में हर व्यक्ति भ्रष्टाचार मिटाएगा और फिर राम राज्य भी आएगा !
शुभकामनाएं देश को !
ये बात .......
जवाब देंहटाएंयही.
यही..
बिलकुल यही..
दिल पर हाथ रख कर कहिये..
मन वचन कर्म से ईमानदारी बरतनी होगी। समय की मांग है यह। इस तरह की लड़ाई पहले मैं से शुरु होती है।
जवाब देंहटाएंमैं भी यही कह सकता हूँ... "शुभकामनायें देश को"
जवाब देंहटाएंMain to kya Anna ko chhodkar Team Anna ka koi bhi sadasy Anna nahi hai... Media ka Camera band karwa do pata chal jayega ki kaun-kaun Anna hai?
जवाब देंहटाएंye ek bill se is desh ka kuch nai hone wala pr kisi chiz ki shuruat hi nai hogi to buraiyan nai mitengi, jb tk koi ankush na ho tb tk na koi dar hota aur yadi insaan bhrastachari na b ho to ye samaj use imandar rehne nai deta wo imandaar majburi me bhrashtachar k saath na jaye isliye ye bill jaruri hai, baat to ye b sach hai k nishchay hona chahiye pr jingdgi ki haqikat to kuch aur hoti hai jisme aam insaan jhulas jata hai aur imandaar b majbur ho jata hai isliye koi majburi bas bhrast na ho isliye ye bil jaruri hai. aur ye ladai yahan to khatm ho hi nai sakti.......
जवाब देंहटाएंसटीक सवाल उठाये हैं आपने .....हल तो शायद ही मिले ...जब तक हम भीड़ का हिस्सा बने रहेंगे तब तक शायद इन प्रश्नों का हल मिले ........!
जवाब देंहटाएंसही सवाल उत्तर की तलाश जारी है सार्थक पोस्ट ,आभार
जवाब देंहटाएंहमे आत्मावलोकन की जरुरत है . सार्थक प्रश्न .
जवाब देंहटाएंचिंतन करने योग्य पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबेहतर...
जवाब देंहटाएंbaat sahi hai kyonki soch badalanaa bahut jaruri hai aur system bhi.phoir bhi kisi cheej ko khatm karane ke liye kahin se ti sruaat hogi dheere dheere desh sudharegaa.
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार अब ख़त्म होना ही चाहिए /क्योंकि ये जनहित के लिए बिल पास हो रहा है /अन्नाजी के माध्यम और उनके नेतृत्व में जनता जागी है /अब ये आन्दोलन सफल होना ही चाहिए / शानदार अभिब्यक्ति के लिए बधाई आपको /जन्माष्टमी की आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं /
आप ब्लोगर्स मीट वीकली (५) के मंच पर आयें /और अपने विचारों से हमें अवगत कराएं /आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें यही कामना है /प्रत्येक सोमवार को होने वाले
" http://hbfint.blogspot.com/2011/08/5-happy-janmashtami-happy-ramazan.html"ब्लोगर्स मीट वीकली मैं आप सादर आमंत्रित हैं /आभार /
यह एक ऐसा संघर्ष है जिसे सतत चलते रहना चाहिए।
जवाब देंहटाएंफिर बिना मतलब के प्रश्न. अगर व्यक्ति खुद ही संयमित हो जाये तो फिर इस पूरे तन्त्र की क्या आवश्यकता है. तन्त्र होता ही इस लिये है कि जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करे, उससे निपटे. मनुष्य की प्रवृत्ति को दोष देकर जो व्यक्ति (अधिकारी) इसके लिये जिम्मेदार हैं, उनके लिये हल्के में छोड़ा जा रहा है.
जवाब देंहटाएंसटीक सवाल उठाये हैं आपने .....
जवाब देंहटाएंराह लम्बी है औऱ बहुत चलना है अभी।
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