पत्थर की इस नगरी में , इक दिल का मिलना मुश्किल है ।
भीड भरे इस मंजर में, इक मन का मिलना मुश्किल है ॥या मेरी चाहत सही नही, या दुनिया की हमको समझ नही ।
हम ही कुछ नादां से है , या दुनिया में अब ईमां ही नही ॥काली अमावस की रातों में , मंजिल का दिखना मुश्किल है ।
पत्थर की इस नगरी......................................................प्यार वफा की बातें तो , हर एक जुबां पर रहती हैं ।
पर नजरें अब दीवानों की , कुछ और कहानी कहती हैं ॥ऐसी मोहब्बत की लहरों में ,डूब के उबरना मुश्किल है ।
पत्थर की इस नगरी......................................................बरसों जिसे तलाशा है , दुनिया के उलझे मेले में ।
बच बच के निकली हूँ अक्सर, घनघोर अंधेरें रेले से ॥सुन पाते नही जब लोग कही, खामोशी को तो सुनना मुश्किल है ।
पत्थर की इस नगरी......................................................
हर शब्द मे जादू है!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया।
सादर
बहुत ही खूबसूरत...
जवाब देंहटाएंया मेरी चाहत सही नही, या दुनिया की हमको समझ नही ।
जवाब देंहटाएंहम ही कुछ नादां से है , या दुनिया में अब ईमां ही नही ॥
काली अमावस की रातों में , मंजिल का दिखना मुश्किल है ।...
बहुत प्यारी रचना... एक बार जिसको पढ़ कर भूलना मुस्किल है...
कसमे वादे तो बनाये ही गए टूटने के लिए . पीड़ा छलक रही है हर शब्द से . सुँदर भाव प्रवण कविता .
जवाब देंहटाएंkhubsurat ehsaas jo shabd man
जवाब देंहटाएंki gehraiyon se nikalte
hain un shabdon ka
yahi rang yahi pehchan
hoti hai very nice....
kabhii mera blog bhi padkar
apne vichar rakhiyega...
बेहतरीन, हर सुबह वही ढूढ़ने के लिये ही उठते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंअच्छी काव्यमय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसाईं पर भरोसा रखिये सब मुश्किल आसान करता जायेगा वो साईं.
ॐ साईं राम
या मेरी चाहत सही नही, या दुनिया की हमको समझ नही ।
जवाब देंहटाएंहम ही कुछ नादां से है , या दुनिया में अब ईमां ही नही ॥
कमाल की भावाभिव्यक्ति .....
शुभकामनायें !
काली अमावस की रातों में , मंजिल का दिखना मुश्किल है ।
जवाब देंहटाएंहर अंधेरी रात के बाद सुबह तो आती ही है। बस रात के कटने का इंतज़ार करना होता है।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंया मेरी चाहत सही नही, या दुनिया की हमको समझ नही ।
जवाब देंहटाएंहम ही कुछ नादां से है , या दुनिया में अब ईमां ही नही ॥
काली अमावस की रातों में , मंजिल का दिखना मुश्किल है ।
पत्थर की इस नगरी........................................
bahut sundar rachna hai
सच्चाई बयां करती बेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसुरत रचना है। एक शेर याद आ रहा है
जवाब देंहटाएंपत्थर के खुदा पत्थर के सनम
पत्थर के ही इसां पाए है।
तुम शहरे मोहब्बत कहते हो
हम जान बचा कर आए है।
बहुत देर अआपकी नज्मे और कहानी को पढ़ रहा हूँ .. कुछ अपना सा लगा है .. शब्द जैसे दिल पर दस्तक दे रहे हो.. कुछ कहने को मन नहीं है , आपकी इस नज़्म ने मन भर दिया .. बस बधाई स्वीकार किजिये.
जवाब देंहटाएंआभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
ये शहर पत्थर का है यहाँ लोग भी पत्थर के हैं
जवाब देंहटाएंकुछ मेहरबान दिल से तो कुछ बाहेर से हैं
इनकी सासों में भरा है एक पथरीलापन
इनकी आखों में हंस रहा है एक नीलापन
इनके ख्वाबों के अश्क हैं जो , वो जहर के हैं
ये कुछ मेहरबान दिल से तो कुछ बाहेर से हैं
बहुत खूब लिखा है, सुन्दर और मर्मिक है
जवाब देंहटाएंWONDERFUL LINES
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