हार जाना हार नही, हार स्वीकार ना करना हार है।
हार का स्वभाव स्थायी नही होता। उसके कारणों का विश्लेषण ना करना उसे स्थिरता की तरफ ले जाता है। पर निन्दा करना एक नकारात्मक प्रक्रिया है, और उसके परिणाम भी नकारात्मक ही होते है। यदि कोई विजयी है, तो इस बात की चर्चा अवश्य होनी चाहिये, कि उसके क्या कारण थे, विजय के पीछे परिश्रम के साथ साथ सकरात्मक सोच, सकरात्मक कर्म और सकरात्मक लक्षय अवश्य होते हैं। हार को भी सकारात्मकता से लेते हुये, स्वस्थ वातावरण और निष्पक्ष तथ्यों के साथ मूल्याकंन और विश्लेशण करके भविष्य में अपनी विजय को स्थायी बनाया जा सकता है।
पिछले तीन
चार दिनों से जिस तरह से सोशल मीडिया पर लोग "आप" की जीत के विरुद्ध अपनी
भावनाये प्रकट करते हुये नकारात्मक विचार शेयर
कर रहे हैं, वह विचार विमर्श किसी और ही दिशा मे ले जा रहा है
किस तरह से
विचार व्यक्त किये जा रहे हैं, इसकी बानगी कुछ इस तरह से देखी जा सकती है......
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सड़क पर नेनो कार व राजनीति में आप कुछ खटकती है.....
भई हम तो ठहरे धर्म और आस्था वाले प्राणी... हमें तो इस परिणाम में बहुत अच्छा संकेत दिखा है. अपने धर्म और अपनी संस्कृति में तो किसी नए काम की शुरुआत या धार्मिक अनुष्ठान में 3 को बहुत शुभ माना जाता है और 13 (6+7) को बहुत अशुभ माना जाता है. ऐसे में किसकी जीत और किसका अंत... इसके लिए प्रतीक्षा तो करनी ही होगी...
एक संदेश मेरे भारतीय मित्रो के नाम
मित्रो अरविंद केजरीवाल की जीत के नशे में कुछ लोग अपनी मर्यादा भूल गये हे
अरे मेरे भारतीय भाइयो और बहनों जिस नरेन्द्र मोदीजी ने खून पसीना एक करके गुजरात एवम् देश की जनता के लिए चौमुखी विकास करके गुजरात एवम् देश को
No1 बनाया क्या उस आदमी की एक छोटे से राज्य में हार से उनकी इतनी भद्दी तरीको से मजाक बनाना सही हे?
अरविंद केजरीवाल पहले भी मुख्यमंत्री बन चुके हे तब वो 49
दिन में भाग गये थे अब दोबारा असंभव से फ्री बिजली पानी
wifi घर जेसे वादे करके मुख्यमंत्री तो बन गये हे पर आज की सच्चाई ये हे की पानी का पाउच भी फ्री नही मिलता हे
जब ये सच्चाई जनता समझेगी तो केजरीवाल का उन्ही के झाड़ू से सफाया कर देगी।
अगर आप भी इस बात से सहमत हे तो इस मेसेज को इतना शेयर करे की ये मेसेज हर भारतीय के फ़ोन में पहुच जाए
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मुझे याद
नही आता जब इससे पहले कभी किसी विधान सभा के परिणामों पर इतना कुछ कहा और लिखा जा
रहा है, क्यों हम इस बात पर नही सोचना चाहते कि दिल्ली की जनता आखिर क्या चाहती थी,
१.अगर उसने
माननीय केजरीवाल जी को दुबारा अवसर दिया तो क्यो?
२.वही जनता
जिसने बीजेपी को लोकसभा में पूरी सात सीटें दी, क्यो वह बीजेपी पर दुबारा विश्वास नही
कर सकी?
३.क्यों उसको
बीजेपी या किसी अन्य दल के हाथों अपना भविष्य सौपनें की इच्छा नही हुयी?
४.क्या मुफ्त
चीजों को बांटने के आश्वासन पहले किसी राज्य या किसी दल ने नही किये, क्या यही आधार
है लोकतंत्र में विजय का?कितना काल्पनिक है ये तर्क?
५.वो क्या कारण
थे कि बीजेपी ने पूर्व विधान सभा में विजयी डा. हर्ष वर्धन जी पर विश्वास ना करते हुये
किरन बेदी जी मुख्यमंत्री के नामित किया?
६.क्यों जनता
ने इतनी योग्य और समझदार उम्मीदवार का चुनाव नही किया?
चुनाव लोकतंत्र
को स्थापित और सुदृढ बनाने की प्रक्रिया है, जनता को जिसमें पूरा हक दिया गया, कि वह
अपने लिये, अपनी सोच समझ से अपनी सरकार चुने।
तो हमे हार
मिले या जीत , ये विश्लेषण अवश्य ही करना होगा कि किन कारणों ने हमे सफलता या असफलता
दिलायी।
ना जीत हुयी स्थायी कभी, ना हार है चिरायु
जीवन को गति देते, जीने के है, ये दो पहलू
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-02-2015) को "कुछ गीत अधूरे रहने दो..." (चर्चा अंक-1890) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पाश्चात्य प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'