निष्फल हो सकता प्रयास
डिग सकता, अडिग संयम,
पर उम्मीदें खत्म नहीं होती
ना समय कभी कोई ठहरा,
ना विजयी होता अंधियारा
ना संकट कोई अमिट रहा,
ना साहस किसी काल हारा
हिल सकता, दृढ़ धीरज,
पर दृढ़ता खत्म नहीं होती
डिग सकता, मन का संयम,
पर उम्मीदें खत्म नहीं होती
बना नहीं वो आकाश जहां,
ना पहुंच सकेगा उजियारा
धरा का ना कोई छोर जहां,
बह सकती नहीं सर धारा
थक सकता, दुर्बल बदन,
पर क्षमता खत्म नहीं होती
डिग सकता, मन का संयम,
पर उम्मीदें खत्म नहीं होती
है जब तक जीवित मानवता,
पृथ्वी जननी कहलायेगी
होगी परास्त विपदा समस्त,
प्रकृति जयघोष सुनायेगी
गिर सकता, झड़ में वरक,
पर टहनी खत्म नहीं होती
डिग सकता, मन का संयम,
पर उम्मीदें खत्म नहीं होती
*वरक - पत्ता, झड़ -पतझड़, सर- जल
बहुत सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नव गीत।
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन।
है जब तक जीवित मानवता,
जवाब देंहटाएंपृथ्वी जननी कहलायेगी
होगी परास्त विपदा समस्त,
प्रकृति जयघोष सुनायेगी
गिर सकता, झड़ में वरक,
पर टहनी खत्म नहीं होती
डिग सकता, मन का संयम,
पर उम्मीदें खत्म नहीं होती... बहुत ही सुंदर सृजन 👌
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव.
जवाब देंहटाएंपर टहनी खत्म नहीं होती
जवाब देंहटाएंडिग सकता, मन का संयम,
पर उम्मीदें खत्म नहीं होती...वाह बेहतरीन बहुत ही सुंदर सृजन 👌