फिर भी मन मैले देखे, हमने लोगों की बातों में
कौन रहेगा कौन बचेगा, सवाल खड़ा दरवाजों में
फिर भी दिल छोटे देखे, हमने लोगों की बातों में
अखबारों के सारे काॅलम, लहू चीख से सने मिले
फिर भी झगड़े होते देखे, हमने लोगों की बातों में
सन्नाटा गहरा पसरा गया, गली मोहल्ले शहरों में
फिर भी डर लूटों के देखे, हमने लोगों की बातों में
भटक रहा कोई दर दर, सिसक रहा कोई सड़कों में
फिर भी चर्चे खोखले देखे, हमने लोगों की बातों में
कुदरत ने तो एक कर दिया, मुल्कों को, इंसानों को
फिर भी भेद पनपते देखे, हमने लोगों की बातों में
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार १९ मई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह! बहुत ख़ूब!!!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-05-2020) को "फिर होगा मौसम ख़ुशगवार इंतज़ार करना " (चर्चा अंक-3707) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
kya baat kya baat
जवाब देंहटाएंwww.khetikare.com
कुदरत ने तो एक कर दिया, मुल्कों को, इंसानों को
जवाब देंहटाएंफिर भी भेद पनपते देखे, हमने लोगों की बातों में
वाह!!!
बहुत खूब...।
अखबारों के सारे काॅलम, लहू चीख से सने मिले
जवाब देंहटाएंफिर भी झगड़े होते देखे, हमने लोगों की बातों में
सन्नाटा गहरा पसरा गया, गली मोहल्ले शहरों में
फिर भी डर लूटों के देखे, हमने लोगों की बातों में... बहुत खूबसूरत लिखा
बहुत ही सुंदर :( मन को छूती अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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