अनगित स्वप्नों की माला,
अविरल मैं बुनती रहती
प्रकरण अपनी यादों के,
अपलक मैं गुनती रहती
धैर्य धरे हम धीरज से,
करें मिलन की आस प्रिये
कहता हदय तुम पास......…..
पायल के गुंजित स्वर भी,
अब मद्धिम से होते जाते
आंखों के बहकते कजरे,
बहने को विकल हुए जाते
कह दो ज़रा इस बिंदिया से,
छोड़ें ना यूं विश्वास प्रिये
कहता हदय तुम पास......…..
इक सुखद स्वप्न सा लगता,
मुझमें तेरा मिल जाना
तपती जेठ की अग्नि में,
ज्यों हिम का घुल जाना
मिल तुमसे ये आभास हुआ,
तुम ही मेरी श्वास प्रिये
कहता हदय तुम पास......…..
अविरल मैं बुनती रहती
प्रकरण अपनी यादों के,
अपलक मैं गुनती रहती
धैर्य धरे हम धीरज से,
करें मिलन की आस प्रिये
कहता हदय तुम पास......…..
पायल के गुंजित स्वर भी,
अब मद्धिम से होते जाते
आंखों के बहकते कजरे,
बहने को विकल हुए जाते
कह दो ज़रा इस बिंदिया से,
छोड़ें ना यूं विश्वास प्रिये
कहता हदय तुम पास......…..
इक सुखद स्वप्न सा लगता,
मुझमें तेरा मिल जाना
तपती जेठ की अग्नि में,
ज्यों हिम का घुल जाना
मिल तुमसे ये आभास हुआ,
तुम ही मेरी श्वास प्रिये
कहता हदय तुम पास......…..
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 09 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावप्रवण
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन श्रृंगार पर ।
जवाब देंहटाएंवाह्ह्
बहुत सुंदर
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