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सोमवार, 25 मई 2020

हम भी

इश्क़ की राह के, हमसफ़र हम भी हुये
तुम बने जो आसमान, चांद हम भी हुये

मुकम्मल हुए ख्वाब सारे, बाद एक मुद्दत के 
रौशनीं में तेरी आज, आफताब हम भी हुये

चुभते रहे न जानिए, कितनों की निगाह में
आपने जो थामा हाथ , गुलाब हम भी हुये

गुज़र रहे थे आम से, रात दिन बेज़ार से
हुई निगाह तुमसे चार, ख़ास हम भी हुये

बुझे हुए चराग से, हुआ किये थे कल तलक
घुली जो मुझमें तेरी सांस, साज़ हम भी हुये

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-05-2020) को "कोरोना तो सिर्फ एक झाँकी है"   (चर्चा अंक-3714)    पर भी होगी। 
    --
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. बहुत कम भाग्यशाली लोगों के ख्वाब मुकम्मल हो पाते हैं

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ मई २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर सृजन
    उम्दा /बेहतरीन।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहूत खूबसूरत । क्या कहना।

    मंजू चौधरी

    जवाब देंहटाएं

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और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

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