जिस तरह चिडिया दिन भर घूमने के बाद अपने घोसले में लौट कर आती है वैसे ही मै भी लौट रहा था , मगर मै एक या दो दिन बाद नही , करीब ३५ साल बाद लौटा था । अपने घोसले की तस्वीर तक धुंधली सी हो गयी थी । एक मन में डर भी था कि मेरे वो अपने जिनको एक दिन मै छोड कर शहर आ गया था , वो मुझको पहचानेंगे भी या नही । बस मन में ऐसे ही ढेरों सवाल और एक आशा की किरण साथ लिये मैं वापस आ रहा था । जिस गली , जिस गाँव को अपनों को मैने तरक्की के लिये छोडा था , आज भी जब मै लौट रहा था तो हाथ खाली ही थे । जिसको जीवनसंगिनी बनाने के लिये मैने अपनों को छोडा था , आज वो भी मुझे छोड कर जा चुकी थी । उस दिन मैने खुद को यह सोच कर समझा लिया था कि ये तो कटु सत्य है कि हर किसी को एक दिन जाना ही है । और फिर बेटा तो है ही , उसके साथ रह कर बाकी की उम्र कट जायगी । जिस दिन मै रिटायर हो कर अपने आफिस से लौटा घर आ कर पता चल गया कि अब मै घर से भी रिटायर हो गया हूँ । खाने के लिये दो रोटी की कमी तो नही थी मगर एक बूँद प्यार और सम्मान की नसीब नही थी । और जब अपमान कराते कराते मन भर गया और आँखो से आंसू निकल पडे तो याद वो घर आया जिसके आंगन ने मुझे चलना सिखाया था ।
आज मै उनके पास लौट रहा हूँ जिनका मैने अपमान किया था । और मन चाहता है कि बस जाते ही सब मुझे गले से लगा लें । सब वैसा ही हो जैसा मै छोड कर गया था । नही जानता मेरी वापसी सही है या गलत , मेरी वापसी किसी को अच्छी लगेगी भी या नही मगर चिडिया अपना घोसला छोड कर आखिर जाये भी तो जाये कहाँ ??
भद्रे मुझे रुला कर तुम्हे क्या मिलेगा दीपक जी के शब्दों में एकदम मार्मिक. मैंने तुम्हे कल ही बताया था ऐसी बाते मुझे अन्दर तक झंझोर देती है. वैसे कहानी का मोरल ...जस करनी तस भरनी.
जवाब देंहटाएंपद्य में तो महारथी तो हो अब गद्य में कीर्ती को प्राप्त करो
शुभाशीष छुटकी
subah ka bhula ..... apne gale lagayenge hi
जवाब देंहटाएंवापसी तो हुई ..पर बहुत देर से ...क्या वो अपने भी होंगे उस घर में ,,जहाँ इतनी उम्मीद से जाया जा रहा है ...
जवाब देंहटाएंbahut khoob ... bahut bhavpoorn ... wapsi ki koi umr nahi hoti ... bas kadam uthane ki der hai ...
जवाब देंहटाएंएक भावनात्मक और सुंदर लघुकथा .... सन्देश देती हुई कि हमें अपनी ज़मीन से जड़े रहना चाहिए.
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से निकली भावनाओं से परिपूर्ण एक हृदयस्पर्शी लघु-कथा. हमारे समाज की वास्तविक तस्वीर देखी जा सकती है इसमें. बहुत-बहुत बधाई .
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण लेख ...............................
जवाब देंहटाएंआस पास की ज़िन्दगी से लेकर एक कटु सत्य को सामने रखती रचना..... ऐसा अक्सर होता ही रहता है....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ....
जवाब देंहटाएंवक़्त बहुत कुछ सिखा देता है ....अर्पणा जी ....
बहुत अच्छी लघुकथा ....
वक़्त रहते हम सीख ले लें ये भी बहुत बड़ी बात है ....
लिंक देने के लिए शुक्रिया ......!!
वो गया ही क्यों था घर छोड़ कर . यदि कमाने गया था तो क्या कुछ भी न कमाया ?????????????
जवाब देंहटाएंऔर कमाया तो कहाँ गया ????????????
तब तक माल है तब तक ताल है स्वार्थीयो के लिए .
लगता है कंगला ही लौटा .
हर व्यक्ति को अपने इस समय से लिए अवश्य ही धन संचय करना चाहिए ताकि वो किसी का मोहताज न रहे .