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रविवार, 23 जनवरी 2011

ओढे चूनर…………




नील गगन के तले धरा पर
पीली चादर सरसों की
ओढे चुनरिया मानो बिरहन 
राह निहारे प्रियतम की



सुध बुध खोई ,मगर ना खोई
आस अभी तक मिलने की ।
प्रभु के नाम सी जपती रहती 
माला वो तो  साजन की ॥
सता रही है बनकर बैरन
पवन ये देखो अगहन की
ओढे चूनर …………….

कह के गये थे आ जाओगे
तुम दो चार महीनों में ।
कसम भी ये दे कर गये थे
आँसू ना लाना नयनों में ॥
याद नही आती क्या तुमको
घर आँगन या बगियन की
ओढे चूनर…………


26 टिप्‍पणियां:

  1. इंतजार और प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति.....

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  2. सुध बुध खोई ,मगर ना खोई
    आस अभी तक मिलने की ।
    yah hui na bat ,badhai

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  3. धूप फागुनी खिली
    बयार बसन्ती चली,
    सरसों के रंग में
    मधुमाती गंध मिली.
    सरसों क़ा रंग ही तो बसंत के पट खोलता है

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  4. अरे वाह... कागा सब तन खाइओ, चुन चुन खाइयो मांस
    दो नैना मत खाइओ, मोहे पिया मिलन की आस.

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  5. सुन्दर भावाभिव्यक्ति बधाई .

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  6. गज़ब गज़ब गज़ब के भाव समेटे हैं…………विरहन के दर्द को मार्मिकता से चित्रित किया है।

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  7. Wow bouth he aacha lagaa aapka post mujhe... thz..

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  8. ओह! अत्यंत ही सुन्दर अभिव्यक्ति....आभार.

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  9. इतनी सुन्दर कविता पढ़े बरस हो गये।

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  10. हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
    कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....

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  11. प्रेमपरक बहुत सुन्दर गीत है,

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  12. कह के गये थे आ जाओगे
    तुम दो चार महीनों में ।
    कसम भी ये दे कर गये थे
    ना आँसू लाना नयनों में ॥
    याद नही आती क्या तुमको
    घर आँगन या बगियन की
    विरह को बहुत ही खुबसुरत अंदाज में दिखाया है आपने।

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  13. "प्रकृति" ही तो है………मनोभावों को चित्रित करने का सुंदर माध्यम! पंक्तिबद्ध अलंकृत शब्द………………विरह की वेदना……क्या कहने!………उम्दा प्रस्तुति।

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  14. बेहद नाज़ुक भावों में एक लयबद्धता है जो कविता को पढ़ते समय ज़ुबां पर अनायास ही गुनगुना उठती है। एक प्यारी रचना।

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  15. शेरो-शायरी, गजल, कविता से जल्दी जुड़ नहीं पाता, पता नहीं क्यूं
    पर कभी-कभी इनसे मन को सकून भी मिलता है।

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  16. अपर्णा जी , भावों से भरी बहुत ही अच्छी कविता .... सुंदर प्रस्तुति.
    बुलंद हौसले का दूसरा नाम : आभा खेत्रपाल

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  17. बहुत ही प्यारी रचना

    नील गगन के तले धरा पर
    पीली चादर सरसों की
    ओढे चूनर मानो बिरहन
    राह निहारे प्रियतम की

    बधाई

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  18. बहुत सुन्दर भावों से ओतप्रोत रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें

    आशा

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  19. आप सब को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं.

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  20. सुध बुध खोई ,मगर ना खोई
    आस अभी तक मिलने की ।
    प्रभु के नाम सी जपती है
    वो माला अपने साजन की ॥


    अपर्णा जी आपने बहुत सटीक अभिव्यक्त किया है भावों को ..प्रेम के निश्छल भाव को वैसे तो अभिव्यक्त करना बहुत कठिन होता है ,.....परन्तु कवि इसे संभव बना देते हैं ....आपका आभार इस सार्थक रचना के लिए ...शुक्रिया

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  21. श्याम का पीताम्बर राधा ने ओढा

    सुन्दरता का द्वार प्रकृति ने खोला

    या राधा स्वयं प्रकृति बन गयी

    श्याम को रास का निमंतन दे रही

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