नील गगन के तले धरा पर
पीली चादर सरसों की
ओढे चुनरिया मानो बिरहन
राह निहारे प्रियतम की
सुध बुध खोई ,मगर ना खोई
आस अभी तक मिलने की ।
प्रभु के नाम सी जपती रहती
माला वो तो साजन की ॥सता रही है बनकर बैरन
पवन ये देखो अगहन की
ओढे चूनर …………….
कह के गये थे आ जाओगे
तुम दो चार महीनों में ।
कसम भी ये दे कर गये थे
आँसू ना लाना नयनों में ॥
याद नही आती क्या तुमको
घर आँगन या बगियन की
ओढे चूनर…………
सुन्दर गीत!
जवाब देंहटाएंइंतजार और प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंसुध बुध खोई ,मगर ना खोई
जवाब देंहटाएंआस अभी तक मिलने की ।
yah hui na bat ,badhai
धूप फागुनी खिली
जवाब देंहटाएंबयार बसन्ती चली,
सरसों के रंग में
मधुमाती गंध मिली.
सरसों क़ा रंग ही तो बसंत के पट खोलता है
अरे वाह... कागा सब तन खाइओ, चुन चुन खाइयो मांस
जवाब देंहटाएंदो नैना मत खाइओ, मोहे पिया मिलन की आस.
बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंविरह में मिलन की आस का सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति बधाई .
जवाब देंहटाएंगज़ब गज़ब गज़ब के भाव समेटे हैं…………विरहन के दर्द को मार्मिकता से चित्रित किया है।
जवाब देंहटाएंWow bouth he aacha lagaa aapka post mujhe... thz..
जवाब देंहटाएंPleace visit My Blog Dear Friends...
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ओह! अत्यंत ही सुन्दर अभिव्यक्ति....आभार.
जवाब देंहटाएंइतनी सुन्दर कविता पढ़े बरस हो गये।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
जवाब देंहटाएंकुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रेमपरक बहुत सुन्दर गीत है,
जवाब देंहटाएंकह के गये थे आ जाओगे
जवाब देंहटाएंतुम दो चार महीनों में ।
कसम भी ये दे कर गये थे
ना आँसू लाना नयनों में ॥
याद नही आती क्या तुमको
घर आँगन या बगियन की
विरह को बहुत ही खुबसुरत अंदाज में दिखाया है आपने।
"प्रकृति" ही तो है………मनोभावों को चित्रित करने का सुंदर माध्यम! पंक्तिबद्ध अलंकृत शब्द………………विरह की वेदना……क्या कहने!………उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहद नाज़ुक भावों में एक लयबद्धता है जो कविता को पढ़ते समय ज़ुबां पर अनायास ही गुनगुना उठती है। एक प्यारी रचना।
जवाब देंहटाएंशेरो-शायरी, गजल, कविता से जल्दी जुड़ नहीं पाता, पता नहीं क्यूं
जवाब देंहटाएंपर कभी-कभी इनसे मन को सकून भी मिलता है।
बहुत ही सुंदर गीत ,,,,
जवाब देंहटाएंअपर्णा जी , भावों से भरी बहुत ही अच्छी कविता .... सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबुलंद हौसले का दूसरा नाम : आभा खेत्रपाल
बहुत ही प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंनील गगन के तले धरा पर
पीली चादर सरसों की
ओढे चूनर मानो बिरहन
राह निहारे प्रियतम की
बधाई
बहुत सुन्दर भावों से ओतप्रोत रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंआशा
आप सब को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं.
जवाब देंहटाएंसुध बुध खोई ,मगर ना खोई
जवाब देंहटाएंआस अभी तक मिलने की ।
प्रभु के नाम सी जपती है
वो माला अपने साजन की ॥
अपर्णा जी आपने बहुत सटीक अभिव्यक्त किया है भावों को ..प्रेम के निश्छल भाव को वैसे तो अभिव्यक्त करना बहुत कठिन होता है ,.....परन्तु कवि इसे संभव बना देते हैं ....आपका आभार इस सार्थक रचना के लिए ...शुक्रिया
श्याम का पीताम्बर राधा ने ओढा
जवाब देंहटाएंसुन्दरता का द्वार प्रकृति ने खोला
या राधा स्वयं प्रकृति बन गयी
श्याम को रास का निमंतन दे रही