पिछले चार साल मै शायद ही कोई दिन ऐसा हुआ होगा जब मै मन्दिर नही गया हा । रोज की दिनचर्या में शामिल था , सुबह आफिस जाने से पहले मन्दिर जाना और सीढियों से उतरते समय उसे एक का सिक्का देना । मेरी तनख्वाह के २५ रुपये उसी के नाम थे । कभी एक से ज्यादा ना मैने दिया ना उसने कभी कुछ कहा । जैसे मैन्दिर में भगवान का स्थान नियत था उसी तरह मन्दिर के बाहर उसका । एक अजीब सा रिश्ता बन गया था मेरा उसके साथ । कभी भी कोई कामयाबी मिलती तो ऐसा लगता जैसे उसमे उसकी दुआओं का भी असर है । कल मेरा प्रोमोशन हुआ था , पता नही क्यो आज मेरे हाथ से पाँच का नोट उसको देने के लिये निकल गया । आज उसके लिये मन मे अजीब सी आत्मीयता का अनुभव हुआ । मैने उसको अपनी तरक्की के बारे में बताया और यह भी कहा कि इसमें आपकी दुआओं का भी असर है । फिर मैने कहा- बाबा मै कई सालो से यहाँ आ रहा हूँ , और हमेशा आपको इसी जगह पर देखता हूँ, आप रोज सबसे पहले मन्दिर कैसे आ जाते हो , आपको कभी देर नही होती । इससे पहले कि वो मुझे जवाब देते , एक आदमी ने आकर पर्ची काटते हुये कहा – निकालो इस महीने का किराया ।फिर थोडा सा मुस्कुराते हुये बोला – अगले महीने टेन्डर पडने है ,तेरी इस जगह पर बहुत लोगों की निगाहें है । मै बिना कुछ कहे चुपचाप चल दिया , मुझे मेरे सवाल का जवाब मिल चुका था।
बहुत अच्छी लघुकथा...बधाई.
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'पाखी की दुनिया ' में भी आपका स्वागत है.
भीख की जगह के लिए भी टेंडर ??????? उफ़ बहुत मार्मिक
जवाब देंहटाएंप्रेरक लेकिन सच वयां करती कहानी अच्छी लगी ..आपका आभार अपर्णा जी
जवाब देंहटाएंवास्तविक धरातल उजागर करती लघुकथा
जवाब देंहटाएंbahut sundar samvedansheel kahani...
जवाब देंहटाएंओह सुन्दर रचना........आभार.
जवाब देंहटाएंभाखरी के भीख मांगने की जगह का टेंडर.........
जवाब देंहटाएंवास्तविकता का सजीव चित्रण करती है आपकी प्रेरक लघु कथा |
सच्चाई के करीब............
जवाब देंहटाएंधंधे का सवाल...
जवाब देंहटाएं@ जैसे मैन्दिर में भगवान का स्थान नियत था उसी तरह मन्दिर के बाहर उसका ।
जवाब देंहटाएं--- यह पंक्ति , प्रसंग में भावपूर्ण लगी ! असंगति की झलक है यहाँ !
जी हाँ सही अभिव्यक्ति है. आजकल ऐसा ही हो रहा है.सब कुछ पेशेवर हो गया है.
जवाब देंहटाएंकुछ भी हो सकता है..
जवाब देंहटाएं@@ .......असंगति की झलक है यहाँ !
जवाब देंहटाएं--- कहीं कुछ आपने गलत नहीं लिखा है जी , मैंने सराहना की है जिस पंक्ति की , उसका सौन्दर्य उसकी असंगति के प्रस्तुतीकरण में ही है | असंगति से मेरा अभिप्राय समाज में व्याप्त / प्रसंग विशेष में व्याप्त असंगति से है | एक तरफ मंदिर में निष्प्राण मूर्ति है और दूसरी ओर वह प्राणवान व्यक्ति गोकि - एक अर्थ में - उसका भी निष्प्राण हो जाना ध्वनित हो रहा हो , उसका भी मूर्तिवत अचेतन होना ध्वनित हो रहा हो ! दूसरी ओर वह व्यक्ति उपेक्षित है और जाने कितने ईश्वर की ओर सश्रद्ध होकर जा रहे है , विसंगति का एक अक्ष यह भी है ! विसंगति के एक कोण को वहाँ भी देखा जा सकता है जहां चेतनामय वस्तु(?) का टेंडर हो रहा हो ! और यह भी की मंदिर जाने वालों की निगाहें 'उस जगह' पर हैं , क्या यह मानव मन में निहित पवित्रता(?) की अवधारणा की असंगति नहीं ? जिस वाक्य को मैंने अपने पूर्व के कमेन्ट में उद्धृत किया है , उसे मैंने इस लघुकथा में विन्यस्त असंगति का केंद्र-वाक्य माना !!
संभव है लिखते समय लेखनहार के ऐसी बातें न रही हों , लेकिन हम पाठक हैं , हम चीजों को एक 'पाठ' के रूप में पढ़ते/देखते हैं , विवेचित/आभ्यांतरीकृत करते हैं ! मैंने इस 'पाठ'को ऐसे ही देखा ! आशा करता हूँ की न स्पष्ट हो पाने की स्थिति में यह स्पष्टीकरण/विवेचन पर्याप्त होगा ! सधन्यवाद !!
जहाँ पर धन की खनक पहुँच सके, हर वह जगह बिकती है।
जवाब देंहटाएंजिन्दगी की यही हकीकत है...........तल्ख.
जवाब देंहटाएंमुझे बाबा भारती की कहानी यद् आ गयी इस लघुकथा से
जवाब देंहटाएंजीत की हार
Fantastic Short-Story...Congts.
जवाब देंहटाएंacchi lagu katha hai.... jeevan men aisi bahut si visangatiyaan dekhne ko milti hain..aur man uchat jata hai....
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