नजरे बदली हैं , या बदला
है नजरिया
हवाओं मे आजकल, कुछ तल्खियां
सी है
दूरियां बढ रही है, या रुक
गये है कदम
राहों में आजकल, कुछ पाबंदिया
सी है
अल्फाज थक गये या खत्म बाते
हो गयी
अहसासों में आजकल, कुछ सर्दियां
सी है
मौसम हुआ बेजार , या बेफिक्र
बागबां हुआ
फूलों में आजकल, कुछ बेनूरियां
सी है
खो गया है चैन, या सुकून
मिलता नही
धडकनो मे आजकल कुछ बेचैनियां
सी है
दिन ढलता नही, या राते बगावत
कर रही
लम्हों में आजकल कुछ सख्तियां
सी है
आंखों का है धोखा या धोखा
मिट रहा
रिश्तों में आजकल कुछ हैरानियां
सी है
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शनिवार (11-04-2015) को "जब पहुँचे मझधार में टूट गयी पतवार" {चर्चा - 1944} पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अल्फाज थक गये या खत्म बाते हो गयी
जवाब देंहटाएंअहसासों में आजकल, कुछ सर्दियां सी है.............बहुत सुन्दर पंक्तियाँ!
आंखों का है धोखा या धोखा मिट रहा
जवाब देंहटाएंरिश्तों में आजकल कुछ हैरानियां सी है
...वाह बहुत सही...
बहुत सुंदर रचना "आजकल"
जवाब देंहटाएंखो गया है चैन, या सुकून मिलता नही
जवाब देंहटाएंधडकनो मे आजकल कुछ बेचैनियां सी है
दिन ढलता नही, या राते बगावत कर रही
लम्हों में आजकल कुछ सख्तियां सी है
आंखों का है धोखा या धोखा मिट रहा
रिश्तों में आजकल कुछ हैरानियां सी है
बहुत शानदार अल्फ़ाज़ डॉ अपर्णा त्रिपाठी जी