अभिमान नही हमको खुद
पर, पर मान बचाना आता है
रह जाती चुपचाप मै
अक्सर, पर आवाज उठाना आता है
नासमझी अब मत करना, अपमान
सहन अब ना होगा
भूखे भेडियों का आहार
कही, ये स्त्री तन अब ना होगा
चूडी कंगन चुनरी पहनकर
भी तलवार चलाना आता है
अभिमान नही हमको खुद
पर, पर मान बचाना आता है
घर की धुरी और लाज अभी तक, नारी ही कहलाती हैं
प्रेम समर्पण और त्याग पर जीवन अर्पण कर जाती हैं
बंजर धरा को ऊसर कर,
लहराते खेत बनाना आता है
अभिमान नही हमको खुदपर,
पर मान बचाना आता है
बात करूं जब अपनी पसन्द
की, तो हंगामे होने लगते हैं
परिवार में हक की बात
करूं, सब विद्रोही कहने लगते हैं
घने अंधेरों में चिंगारी
बनकर, अस्तित्व बनाना आता है
अभिमान नही हमको खुद
पर, पर मान बचाना आता है
*चित्र के लिये गूगल का आभार
*चित्र के लिये गूगल का आभार
Superb
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..........वाह क्या सुन्दर और प्रेरणादायक पंक्तिया है!
जवाब देंहटाएंघर की धुरी और लाज अभी तक, नारी ही कहलाती हैं
जवाब देंहटाएंप्रेम समर्पण और त्याग पर जीवन अर्पण कर जाती हैं
बंजर धरा को ऊसर कर, लहराते खेत बनाना आता है
अभिमान नही हमको खुदपर, पर मान बचाना आता है
सुन्दर , प्रेरणादायक शब्द अपर्णा जी !!
अप्रतिम पंक्तियाँ हैं
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