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सोमवार, 27 अप्रैल 2015

ख्वाइशों के पुलिंदे


मुश्किल ना था बयां करना , हाल-ए-दिल तुमसे
मगर आरजू रही आजमां ही ले इम्तेहान-ए-सबर

गुनाह तो ना था ढहा देना, चंद फासलों की दीवार
मगर चाहत से बडी थी, तेरे अहसासों की फिकर

नजरें मिलते ही दे बैठे थे, तुझे जान-ओ- जिगर
मगर ख्वाइश , कुबूल कर ले, तेरी शर्माती नजर

मेरे हर हर्फ-ओ-अल्फाज में शामिल, उसका ही चर्चा
उम्मीद आये उनके चर्चों मे , कभी मेरा भी जिकर

नामुंकिन तो ना था, मांग लेना तुम्हे दुआओं में
मगर हसरत थी हो तुझपे मेरी वफाओं का असर

आसां ना था जब्त कर लेना, तडपते जज्बातों को
तमन्ना थी खुद-ब-खुद हो उन्हे, हालातों की खबर

नामन्जूर था मिलना उनसे, सिर्फ इक उम्र के लिये
अरमां ये, हो बांहो मे तो, थम जाय शाम-ओ-सहर

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ...तमन्ना थी खुद-ब-खुद हो उन्हे, हालातों की खबर...सुंदर रचना

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  2. आसां ना था जब्त कर लेना, तडपते जज्बातों को
    तमन्ना थी खुद-ब-खुद हो उन्हे, हालातों की खबर
    ....
    बेहद सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  3. आसां ना था जब्त कर लेना, तडपते जज्बातों को
    तमन्ना थी खुद-ब-खुद हो उन्हे, हालातों की खबर
    बहुत खूब …।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल ...गुनगुना के मजा आया ...वाह

    जवाब देंहटाएं
  5. नामुंकिन तो ना था, मांग लेना तुम्हे दुआओं में
    मगर हसरत थी हो तुझपे मेरी वफाओं का असर

    आसां ना था जब्त कर लेना, तडपते जज्बातों को
    तमन्ना थी खुद-ब-खुद हो उन्हे, हालातों की खबर
    खूबसूरत अल्फ़ाज़ों से सजी सुन्दर ग़ज़ल

    जवाब देंहटाएं

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