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शुक्रवार, 27 मई 2016

क्यों नही बदल रहा...........


कभी कभी लगता है जैसे, कुछ नही बदल रहा
आज भी हर तरफ इंसान, इंसा्न को छल रहा

बातों में सबकी तडप दिखती, है सब बदलने की
कर्मो में चुप चाप सर्प सा, डस लेने को मचल रहा

प्रेम प्रीत की बात करते, थकते नही व्याख्यान में
जाति धर्म की आड में, व्यवस्था को ही निगल रहा

खो गयी शर्मो हया , सूख गया आँखो का पानी
देख कर सुन्दरी, सुरा, आचरण भी फिसल रहा

अत्याचार दुराचार आम हुआ, सभ्यता के दौर मे
चीत्कार, सुन-सुन, पशुओं का दिल भी दहल रहा

छल कपट के मन को ढकते, दिखावटी मुस्कान से
रिश्तों का गर्म लावा, लालची ,बर्फ पर पिघल रहा

धोखे मक्कारी के  खेल मे, उलझा रहे है देश को
गिर- गिर कर भी क्यो नही, ये आदमी संभल रहा

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