कई बार मन खिन्न हो जाता है
लगता है एक मै ही हूँ, जो परेशान है
मेरे ही पास बहुत काम है
मुझे कुछ ऐसा नही मिला, जिसके लिये खुश रहूँ
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कई बार दिल उदास हो जाता है
जीने का एक भी कारण नही मिलता
दिल करता है काश, ऊपर वाला मुझे उठा ले
नही जीना अब और मुझे, किसके लिये जियूँ
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कई बार कही दूर भागने को दिल करता है
वहाँ जहाँ कोई ना हो, कोई शिकायत नही
किसी का बन्धन नही, कोई मजबूरी नही
आखिर कब तक लोगो को खुश करती रहूँ
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मगर आज तक
ये भाव स्थिर नही हो सके
हर बार, मुझे मिल ही गयी
जीने की वजह
किसी अपने का साथ
खुश रहने का कारण
हर बार, मुझे मिल ही गयी
अपनी खोई चाहत
कुछ कर गुजरने का जज्बा
किसी की कैद में खुशी
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शायद यही जिन्दगी है
भावो का उतार चढाव
मन का बिखरना संभलना
निराशा के छोर से लौट आना
फिर डूब जाना अपने आपमें
कभी कभी रोना भी दे जाता है नयी ताकत
बहते आंसू ले जाते है नकारात्मक भाव
धुली आँखे फिर दिखाती है नये सपने
हाँ यही जिन्दगी है...........................
सुन्दर लेख !
जवाब देंहटाएंबधाई
Dynamic
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 09 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-05-2016) को "सब कुछ उसी माँ का" (चर्चा अंक-2337) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी बिलकुल यही जिंदगी है ☺ सुन्दर रचना
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