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मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

मेरे शब्द, मेरी कही

नही चाहत मुझे, किसी तारीफ के पुलिन्दे की
हम वो सोना हैं जो, तपती आग में निखरता है

क्या मिटाओगे उसे, जो खुद को मिटा बैठा है
हम वो मिट्टी हैं जो, बीज को फसल करता है

कठिन नही समझना मुझे, कोशिश तो करिये
हम वो पन्ना हैं जो, तेरा ही कहा लिखता है

नही लगता साथ टूटने में, पलभर का समय
हम वो रिश्ता है जो, काँच सा दिल रखता है

मेरी क्षमताओं को परखना, कुछ तो कम करिये
हम वो किनारा हैं जो, लहरों पे नजर रखता है

न खोजना मुझे गहरे सागर में, मोती की तरह
हम वो धागा है जो, मोतियों में छुपा रहता है

बहुत आसां है मुझे अपनाकर, अपना कर लेना
हम वो पानी हैं जो, हर रंग को ओढ लेता है

5 टिप्‍पणियां:

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